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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/२८४

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मॉगे की घड़ी २८५ का लेना और देना दोनों ही पाप समझता था। ईश्वर ने माना है, वह इस सिद्धात का पालन कर सकता है। मै कैसे कर सकता हूँ। जानता था कि वह साफ इनकार करेगा, पर दिल न माना। खुशामद के बल पर मैंने अपने जीवन में बड़े बड़े काम कर दिखाये हैं, इसी खुशामद की बदौलत श्राज महीने में ३०) फटकारता हूँ । एक हजार ग्रेजुएटों से कम उम्मेदवार न थे; लेकिन सब मुँह ताकते रह गये और बदा मूछों पर ताव देता हुआ घर आया । जब इतना बडा पाला मार लिया, तो दो चार दिन के लिए घड़ी मांग लाना कौन-सा बड़ा मुश्किल काम था। शाम को जाने की तैयारी थी। प्रातःकाल दानू के पास पहुंचा और उनके छोटे बच्चे को, लो बैठक के सामने सहन में खेल रहा था, गोद में उठाकर लगा भींच भींचकर प्यार करने । दानू ने पहले तो मुझे पाते देखकर जरा त्योरियॉ चढाई थीं, लेकिन मेरा यह वात्सल्य देखकर कुछ नरम पडे, उनके अोठों के किनारे जरा फैल गये । बोले-खेलने दो दुष्ट को, तुम्हारा कुरता मैला हुआ जाता है । मैं तो इसे कभी छूता भी नहीं। मैने कृत्रिम तिरस्कार का भाव दिखाकर कहा-मेरा कुरता मैला हो रहा है न, श्राप इसकी क्यों फिक्र करते हैं। वाह ! ऐसा फूल-सा बालक और उसकी यह क़दर । तुम-जैसो को तो ईश्वर नाहक सतान देता है । तुम्हें भारी मालूम होता हो, तो लामो मुझे दे दो। यह कहकर मैंने बालक को कधे पर बैठा लिया और सहन में कोई द्रह मिनट तक उचकता फिरा । बालक खिलखिलाता था और मुझे दम न लेने देता था, यहां तक कि दानू ने उसे मेरे कधे से उतारकर जमीन पर बैठा दिया और बोले-कुछ पान-पत्ता तो लाया नहीं, उलटे सवारी कर बैठा। जा, अम्मा से पान बनवा ला। बालक मचल गया। मैने उसे शात करने के लिए दानू को हल्के हाथों दो-तीन धप जमाये और उनकी रिस्टवाच से सुसज्जित कलाई पकड़कर बोला- ले लो वेटा, इनकी घड़ी ले लो, यह बहुत मारा करते हैं तुम्हें । श्राप तो घडी लगाकर बैठे हैं और हमारे मुन्ने के पास घड़ी नहीं । मैंने चुपके से रिस्ट वाच खोलकर बालक की बांह में बांध दी और तब उसे गोद में उठाकर बोला-भैया, अपनी घडी हमें दे दो। -