पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/२८३

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माँगे की घड़ी मेरी समझ में आज तक यह बात न आई कि लोग ससुराल जाते हैं, तो इतना ठाट-बाट क्यों बनाते हैं। आखिर इसका उद्देश्य क्या होता है ? हम अगर लखपती हैं तो क्या और रोटियों को मुहताज हैं तो क्या, विवाह तो हो ही चुका, अब इस ठाट का हमारे ऊपर क्या असर पड़ सकता है । विवाह के पहले तो उससे कुछ काम निकल सकता है। हमारी सपन्नता बातचीत पक्को करने में बहुत कुछ सहायक हो सकती है। लेकिन जब विवाह हो गया, देवीजी हमारे घर का सारा रहस्य जान गई और निःसदेह अपने माता-पिता से रो-रोकर अपने दुर्भाग्य की कथा भी कह सुनाई, तो हमारा यह ठाट हानि के सिवा, लाभ नहीं पहुंचा सकता। फटे हालों देखकर, सभव है, हमारी सासजी को कुछ दया आ जाती और बिदाई के बहाने कोई माकूल रक़म हमारे हाथ लग जाती। यह ठट देखकर तो वह अवश्य ही समझेगी कि अब इसका सितारा चमक उठा है, जरूर कहीं-न-कहीं से मात्र मार लाया है, उधर नाई और कहार इनाम के लिए बड़े-बड़े मुँह फैलायेगे, वह अलग। देवीजी को भी भ्रम हो सकता है। मगर यह सब जानते और समझते हुए मैंने पारसाल होलियो में ससुराल जाने के लिए बडी-बड़ी तैयारियां की। रेशमी अचकन ज़िन्दगी में कभी न पहनी थी, फत्तेक्स के बूटों का भी स्वप्न देखा करता था। अगर नकद रुपये देने का प्रश्न होता, तो शायद यह स्वप्न स्वप्न ही रहता, पर एक दोस्त की कृपा से दोनों चीजे उधार मिज़ गई। चमड़े का सूटकेस । एक मित्र से मांग लाया। दरी फट गई थी और नई दरी उधार मिल भी सकती थी। लेकिन बिछावन ले जाने की मैंने ज़रूरत न समझी । अब केवल रिस्टवाच की और कमी थी। यों तो दोस्तो में कितनो ही के पास रिस्टवाच थी-मेरे सिवा ऐसे अभागे बहुत कम होंगे, जिनके पास रिस्टवाच न हो- लेकिन मैं सोने की घड़ी चाहता था और वह केवल दानू के पास थी। मगर दानू से मेरी बेतकल्लुम न थी । दानू रूखा अादमी था। मगनी की चीज़ों