पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/८०

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डिमांसंट्रेशन हैं और नम्रता का यह हाल है कि अपने को कुछ समझते ही नहीं । महानता का यही लक्षण है । जिसने अपने को कुछ समझा, वह गया। ( कंपनी के स्वामी से ) आप तो अब खुद ही सुनेगे, ड्रामे में अपना हृदय निकालकर रख दिया है । कवियो में जो एक प्रकार का अल्हड़पन होता है, उसको आप में कहीं गध भी नहीं। इस ड्रामे की सामग्री जमा करने के लिए आपने कुछ नहीं तो एक हज़ार बड़े-बड़े पोथो का अध्ययन किया होगा। वाजिद-, अली शाह को स्वार्थी इतिहास-लेखकों ने कितना कलकित किया है, श्राप लोग जानते ही हैं । उस लेख-राशि को छोटकर उसमें से सत्य के तत्व खोज निकालना आप ही का काम था ! विनोद-इसी लिए हम और आप दोनो कल फत्ते गये और वहाँ कोई ६ महीने मटियाबुर्ज की खाक छानते रहे। वाजिद अली शाह की हस्तलिखित एक पुस्तक की तलाश की। उसमे उन्होने खुद अपनी जीवन-चर्चा लिखी है । एक बुड़िया की पूजा की गई तब कहीं जाके ६ महीने में किताब मिली। अमरनाथ--पुस्तक नहीं रत्न है । मस्तराम-उस वक्त तो उसकी दशा कोयले की थी, गुरुप्रसाद जी ने उसपर मोहर लगाकर अशर्फी बना दिया। ड्रामा ऐसा चाहिए कि जो सुने दिल हाथों से थाम ले । एक-एक वाक्य दिल में चुभ जायें। अमरनाथ -ससार साहित्य के सभी नाटकों को आपने चाट डाला और नाट्य-रचना पर सैकडो किताबे पढ़ डाली विनोद--जभी तो चीज भी लासानी हुई है। अमरनाथ-लाहौर ड्रामेटिक क्लब का मालिक हफ्ते भर यहाँ पड़ा रहा, पैरों पड़ा कि मुझे यह नाटक दे दीजिए , लेकिन आपने न दिया। जब ऐक्टर ही अच्छे नहीं, तो उनसे अपना ड्रामा खेलवाना उसकी मिट्टी खराब करना था। इस कपनी के ऐक्टर माशाअल्लाह अपना जवाब नही रखते और इसके नाटककार की. सारे ज़माने में धूम है। आप लोगों के हाथों में पड़कर यह ड्रामा धूम मचा देगा। विनोद-एक तो लेखक साहब खुद शैतान से ज़्यादा मशहूर हैं, उस पर यहाँ के ऐक्टरों का नाट्य कौशल ! शहर लुट जागा । -