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डिमांसट्रेशन
अमर -- साफ आँखों में धूल झोंक दो।
रसिक -- मैं उसकी चुप्पी देखकर पहले ही से डर रहा था कि यह कोई पल्ले सिरे का घाघ है।
मस्त -- मान गया इसकी खोपड़ी को। यह चपत उम्र भर न भूलेगी। गुरुप्रसाद इस आलोचना में शरीक न हुए। वह इस तरह सिर झुकाये चले जा रहे थे, मानो अभी तक वह स्थिति को समझ ही न पाये हों।
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