पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/१२०

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११६ मानसरोवर । श्याम०- शारदा–हाँ-हां, वही-वही। मैं अब उनके घर रोज़ जाऊँगी। देवी-क्या तू उसके घर गई थी ? शारदा-वही तो गोद में उठाकर ले गये। श्याम० --तू नीचे खेलने मत जाया कर। किसी दिन मोटर के नीचे दब जायगी। देखती नहीं, कितनी मोटरें आती रहती हैं। शारदा [-राजा-भैया कहते थे, तुम्हें मोटर पर हवा खिलाने ले चलेंगे। तुम वैठी-बैठी क्या किया करती हो, जो तुमसे एक लड़की की निग- रानी भी नहीं हो सकती ? देवी-इतनी बड़ी लड़की को संदूक मे बन्द करके नहीं रखा जा सकता। श्याम - तुम जवाब देने में तो बहुत तेज़ हो, यह मैं जानता हूँ। यह क्यों नहीं कहती कि बातें करने से फुरसत नहीं मिलती। देवी-बातें मैं किससे करती हूँ। यहाँ तो कोई पड़ोसिन भी नहीं ? श्याम० -मुन्नू तो हई है। देवी-(ओठ चबाकर ) मुन्नू क्या मेरा कोई सगा है, जिससे बैठी बातें किया करती हूँ! गरीब आदमी है, अपना दुख रोता है, तो क्या कह दूं? मुझसे तो दुत्कारते नहीं बनता। श्याम-खैर, खाना बना लो, नौ बजे तमाशा शुरू हो जायगा । सात बज गये हैं। देवी-तुम जाओ, देख आओ, मैं न जाऊँगी। श्याम -तुम्हीं तो महीनों से तमाशे की रट लगाये हुए थीं। अब क्या हो क्या तुमने कसम खा ली है कि यह जो बात कहें, वह कभी न मानूंगी ? देवी-जाने क्यों तुम्हारा ऐसा खयाल है। मैं तो तुम्हारी इच्छा पाकर ही कोई काम करती हूँ। मेरे जाने से कुछ और पैसे खर्च हो जायेंगे, और रुपये कम पड़ जायेंगे तो तुम मेरी जान खाने लगोगे, यही सोचकर मैंने कहा था। अब तुम कहते हो, तो चली चलूँगी । तमाशा देखना किसे बुरा लगता है । गया? नौ बजे श्यामकिशोर एक तोंगे पर बैठकर देवी और शारदा के साथ थियेटर देखने चले। सड़क पर थोड़ी ही दूर गये थे कि पीछे से एक और तांगा आ पहुँचा । इस पर रज़ा बैठा हुआ था, और उसके बगल में-हाँ, उसके बगल में बैठा था