पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/१२२

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११८ मानसरोवर

श्याम०-नहीं, मैं तुम्हें इतना नीच नहीं समझता मगर बेसमझ ज़रूर सम- झता हूँ। तुम्हें इस बदमाश को कभी मुंह न लगाना चाहिए था। अब तो तुम्हें मालूम हो गया कि वह छटा हुआ शोहदा है, या अब भी कुछ शक है ? देवी-मैं उसे कल ही निकाल दूंगी। मुशीजी लेटे ; पर चित्त अशात था । वह दिन-भर दफ्तर में रहते थे। क्या जान सकते थे कि उनके पीछे देवो क्या करती है । वह यह जानते थे कि देवी पतिव्रता है, पर यह भी जानते थे कि अपनी छवि दिखाने का सुन्दरियों को मरज़ होता है । देवी जरूर बन-ठनकर खिड़की पर खड़ी होती है, और महल्ले के शोहदे उसको देख-देखकर मन में न जाने क्या-क्या कल्पना करते होंगे। इस व्यापार को बन्द कराना उन्हें अपने क़ाबू से बाहर मालूम होता था। शोहदे वशीकरण की कला में निपुण होते हैं। ईश्वर न करे, इन बदमाशो की निगाह किसी भले घर की बहू-बेटी पर पड़े ! इनसे कैसे पिड छुड़ाऊँ ? बहुत सोचने के बाद अन्त में उन्होंने वह मकान छोड़ देने का निश्चय किया । इसके सिवा उन्हें दूसरा उपाय न सूझा । देवी से वोले-कहो, तो यह घर छोड़ दूं । इन शोहदों के बीच में रहने से आवरू बिगड़ने का भय है। देवी ने आपत्ति के भाव से कहा-जैसी तुम्हारी इच्छा ! श्याम० -आखिर तुम्हीं कोई उपाय बताओ। देवी-मैं कौन-सा उपाय बताऊँ, और किस बात का उपाय ? सुझे तो घर छोड़ने की कोई जरूरत नहीं मालूम होती। एक-दो नहीं, लाख-दो लाख शोहदे हो, तो क्या । कुत्तों के भूकने के भय से कोई अपना मकान छोड़ देता है ! श्याम कभी-कभी कुत्ते काट भी तो लेते हैं। देवी ने इसका कोई जवाब न दिया और तर्क करने से पति की दुश्चिन्ताओं के बढ़ जाने का भय था। यह शकी तो हैं ही, न-जाने उसका क्या आशय समझ बैठे। तीसरे ही दिन श्याम बाबू ने वह मकान छोड़ दिया। ( ४ ) इस नये मकान में आने के एक सप्ताह पीछे एक दिन मुन्नू सिर मे पट्टी बाँधे, लाठी टेकता हुआ आया, और आवाज़ दी। देवी उसकी आवाज पहचान गई, पर उसे दुत्कारा नहीं । जाकर केवाड़ खोल दिये । पुराने घर के समाचार जानने के लिए .