१२८ मानसरोवर थानेदार लज्जित होकर चला गया । जब लोग सड़क पर पहुंचे, तो एक सिपाही ने कहा - मेहरिया बड़ी टनमन दिखात है। थानेदार-अजी, इसने तो मेरा नातक्का बद कर दिया । किस गज़ब का हुस्न पाया है। मगर कसम ले लो, जो मैंने एक बार भी उसकी तरफ निगाह को हो । ताकने की हिम्मत ही न पड़ती थी। बाबू श्यामकिशोर बारह बजे के बाद नशे में चूर घर पहुंचे। उन्हें यह खबर रास्ते ही में मिल गई थी। रोते हुए घर मे दाखिल हुए । देवी मरी बैठी, थी सोच रखा था- आज चाहे जो हो जाय , पर फटकारूँगी ज़रूर । पर उनको रोते देखा, तो सारा गुस्सा गायब हो गया । खुद भी रोने लगी। दोनों बड़ी देर तक रोते रहे । इस विपत्ति ने दोनो के हृदयों को एक दूसरे की ओर बड़े जोर से खींचा । उन्हें ऐसा ज्ञात हुआ कि उनमें फिर पहले का-सा प्रेम जाग्रत हो गया है। प्रात काल जब लोग दाह-क्रिया करके लौटे, तो श्यामकिशोर ने देवी की ओर स्नेह से देखकर करुण स्वर में कहा - तुम्हारा जी अकेले कैसे लगेगा। देवी-तुम दस-पाँच दिन की छुट्टी न ले सकोगे ? श्याम.-- -यही मैं भी सोचता हूँ। पन्द्रह दिन की छुट्टी ले लूँ । श्याम बाबू दफ्तर छुट्टी लेने चले गये। इस विपत्ति में भी आज देवी का हृदय जितना प्रसन्न था, उतना उधर महीनों से न हुआ था । बालिका को खोकर वह विश्वास और प्रेम पा गई थी, और यह उसके आँसू पोछने के लिए कुछ कम न था । आह ! अभागिनी ! खुश मत हो । तेरे जीवन का वह अन्तिम काड होना अभी बाकी है, जिसकी आज तू कल्पना भी नहीं कर सकती। ) दूसरे दिन बाबू श्यामकिशोर घर ही पर थे कि मुन्नू ने आकर सलाम किया। श्याम- किशोर ने जरा कड़ी आवाज़ में पूछा-क्या है जी, यह तुम क्यों बार-बार यहाँ आया करते हो? मुन्नू बड़े दीन भाव से बोला-मालिक, कल की बात जो सुनता है, उसो को रंज होता है। मैं तो हजूर का गुलाम ठहरा। अव नौकर नहीं हूँ तो क्या, सरकार का नमक तो खा चुका हूँ। भला, वह कभी हड़ियों से निकल सकता है ? कभी-कभी हाल हवाल पूछने आ जाता हूँ। जब से कलवाली बात सुनी है, हजूर, ऐसा कलक हो
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