मानसरोवर । एक दिन कोई चार वजे मुन्नू फिर आया, और आँगन में खड़ा होकर बोला- मालकिन, मैं हूँ मुन्नू, जरा नीचे आ जाइयेगा। देवी ने ऊपर ही से पूछा-क्या काम है ? कहो तो । मुन्नू-ज़रा आइये तो। देवी नीचे आई, तो मुन्नू ने कहा-रजा मियाँ बाहर खड़े हैं, और हजूर से मातमपुरसी करते हैं। देवी ने कहा-जाकर कह दो, ईश्वर जो मरज़ी थी, वह हुई। रजा दरवाजे पर खड़ा था। ये वाते उसने साफ सुनीं। बाहर ही से बोला- खुदा जानता है, जब यह खबर सुनी है, दिल के टुकड़े हुए जाते हैं । मैं ज़रा दिल्ली चला गया था। आज ही लौटकर आया हूँ। अगर मेरी मौजूदगी में यह वारदात हुई होती, तो और तो क्या कर सकता था, मगर मोटरवाले को विला सजा कराये न छोड़ता, चाहे वह किसी राजा ही की मोटर होती। सारा शहर छान डालता। बाबू साहब चुपके होके बैठ रहे, यह भी कोई वात है ! मोटर चलाकर क्या कोई किसी की जान ले लेगा ! फूल सी मासूम बच्ची को ज़ालिमों ने मार डाला । हाय ! अब कौन मुझे राजा भैया कहकर पुकारेगा ? खुदा की कसम, उसके लिए दिल्ली से टोकरी-भर खिलौना ले आया हूँ। क्या जानता था कि यहां यह सितम हो गया। मुन्नू, देख यह तावीज़ ले जाकर बहूजी को दे दे। इसे अपने जूड़े में बाँध लेंगी। खुदा ने चाहा, तो उन्हें किसी तरह की दहशत या खटका न रहेगा । उन्हें बुरे-बुरे ख्वाब दिखाई देते होंगे, रात को नींद उचट जाती होगी, दिल घबराया करता होगा। ये सारी शिकायतें इस तावीज़ से दूर हो जायेंगी। मैंने एक पहुंचे हुए फकीर से यह ताबीज लिखाया है। इसी तरह से रजा और मुन्नू उस वक्त तक एक-न-एक वहाने से द्वार से न टले; जब तक बाबू साहव आते न दिखाई दिये । श्यामकिशोर ने उन दोनों को जाते देख लिया। ऊपर जाकर गंभीर भाव से बोले-रजा क्या करने आया था ? देवी-यों ही मातमपुरसी करने आया था । आज दिल्ली से आया है। यह खवर सुनकर दौड़ा आया था। -मर्द मर्दो से मातमपुरसी करते हैं, या औरतों से ? देवी-तुम न मिले, तो मुझो से शोक प्रकट करके चला गया। श्याम- 5
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