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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/१९

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निमन्त्रण सोना-हमें भी तो कोई नाम बता दो। मोटेराम ने रसिकता से मुसकराकर कहा---तुम्हारा नाम "पण्डित मोहन- सरूप सुकुल। सोनादेवी ने लजाकर सिर झुका लिया । (३) सोनादेवी तो लड़कों को कपड़े पहनाने लगीं। उधर फेकू आनन्द की उमग में घर से बाहर निकला । पण्डित चिन्तामणि रूठकर तो चले थे ; पर कुतूहलवश अभी तक द्वार पर दबके खड़े थे। जिन बातों की भनक इतनी देर में उनके कानो मे पड़ी, उससे यह तो ज्ञात हो गया कि कहीं निमन्त्रण है , पर कहाँ है, कौन-कौनसे लोग निमन्त्रित हैं, यह कुछ ज्ञात न हुआ था। इतनेमें फेकू वाहर निकला, तो उन्होंने उसे गोद में उठा लिया और चोले-कहाँ नेवता है, बेटा ? अपनी जान में तो उन्होंने बहुत धीरे से पूछा था ; पर न जाने कैसे पण्डित मोटेराम के कान में भनक पड़ गई। तुरन्त बाहर निकल आये । देखा, तो चिन्ता- मणिजी फेकू को गोद में लिये कुछ पूछ रहे हैं । लपककर लड़के का हाथ पकड़ लिया और चाहा कि उसे अपने मित्र की गोद से छीन लें , मगर चिन्तामणिजी को अभी अपने प्रश्न का उत्तर न मिला था। अतएव वे लड़के का हाथ छुड़ाकर उसे लिये हुए अपने घर की ओर भागे । मोटेराम भी यह कहते हुए उनके पीछे दौड़े-उसे क्यों लिये जाते हो ? धूर्त कहीं का, दुष्ट ! चिन्तामणि, मैं कहे देता हूँ, इसका नतीजा अच्छा न होगा; फिर कभी किसी निमन्त्रण में न ले जाऊँगा। भला चाहते हो, तो उसे उतार दो...। मगर चिन्तामणि ने एक न सुनी। भागते ही चले गये। उनकी देह अभी सँभाल के बाहर न हुई थी, दौड़ सकते थे; मगर मोटेरामजी को एक- एक पग आगे बढ़ना दुस्तर हो रहा था। भैंसे को भौति हाँफते थे और नाना प्रकार के विशेषणों का प्रयोग करते दुलकी चाल से चले जाते थे। और यद्यपि प्रतिक्षण अन्तर बढता जाता था पर पीछा न छोड़ते थे । अच्छी घुड़दौड़ की। नगर के दो महात्मा दौड़ते हुए ऐसे जान पड़ते थे, मानो दो गैंडे चिड़िया-घर से भाग आये हों। सैकड़ों आदमी तमाशा देखने लगे। कितने ही वालक उनके पीछे तालियां बजाते हुए दौड़े। कदाचित् यह दौड़ पण्डित चिन्तामणि के घर ही पर समाप्त होती ; पर पण्डित मोटेराम धोती के ढीली हो जाने के कारण उलझाकर गिर पड़े। चिन्तामणि ने पीछे . 1