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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/१८

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“१४ मानसरोवर मोटेराम ने फेकूराम को बोलने का अवसर न दिया। डरे कि यह तो सारा भडा फोड़ देगा। बोले-यह अभी क्या पढेगा। दिन-भर खेलता है। फेकूराम इतना बड़ा अपराध अपने नन्हें-से सिर पर क्यों लेता। बाल-सुलभ गर्व से वोला- हमको तो याद है, पण्डित सेतूराम पाठक । हम पाठ भी याद कर लें, तिस पर भी कहते हैं, हरदम खेलता है ? यह कहते हुए फेकूराम ने रोना शुरू किया। चिन्तामणि ने बालक को गले लगा लिया और बोले- नहीं बेटा, तुमने अपना पाठ सुना दिया है। तुम खूब पढते हो। यह सेतूराम पाठक कौन है, बेटा ! मोटेराम ने बिगड़कर कहा-तुम भी लड़कों की बातों में आते हो। सुन लिया होगा किसी का नाम । ( फेकू से ) जा बाहर खेल । चिन्तामणि अपने मित्र की घबराहट देखकर समझ गये कि कोई-न-कोई रहस्य अवश्य है। बहुत दिमारा लडाने पर भी सेतूराम पाठक का आशय उनकी, समझ में न आया। अपने परम मित्र की इस कुटिलता पर मन में दुखित होकर बोले- अच्छा, आप पाठ पढाइए और परीक्षा लीजिए । मैं जाता हूँ। तुम इतने स्वार्थी हो, इसका मुझे गुमान तक न था। आज तुम्हारी मित्रता को परीक्षा हो गई। पण्डित चिन्तामणि बाहर चले गये। मोटेरामजी के पास उन्हें मनाने के लिए समय न था । फिर परीक्षा लेने लगे। सोना ने कहा-मना लो, मना लो। रूठे जाते हैं । परीक्षा फिर ले लेना । मोटे. जब कोई काम पड़ेगा, मना लूँगा। निमन्त्रण की सूचना पाते हो इनका सारा क्रोध शान्त हो जायगा। हाँ भवानी, तुम्हारे पिता का क्या नाम है, बोलो भवानी-गंगू पाड़े। मोटे०-और तुम्हारे पिता का नाम फेकू ? फेकू-वता तो दिया, उस पर, कहते हैं, पढ़ता नहीं ? मोटे०—हमें भी बता दो ।, फेकू-सेतूराम पाठक तो है ? मोटे०-बहुत ठीक, हमारा लड़का बड़ा राजा है। आज तुम्हें अपने साथ चैठायेंगे और सबसे अच्छा माल तुम्हीं को खिलायेंगे। 1