पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/१९३

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पिसेनहारी का कुआं १८९ चौधरी-तो मेरा क्या वस है भाई, कभी कुआँ धनेगा कि नहीं 2 पाँच साल तो हो गये। स्त्री |---इस वक्त. उसने कुछ नही खाया । पहली जून भी मुंह जूठा करके उठ गया था। चौधरी-तुमने समझाकर खिलाया नहीं , दाना-पानी छोड़ देने से तो रुपये न मिलेंगे। स्त्री-तुम क्यों नहीं जाकर समझा देते ? चौधरी -- मुझे तो वह इस समय वैरी समझ रहा होगा। स्त्री-में रुपये ले जाकर बच्चा को दिये आती हूँ, हाथ मे जव रुपये आ जाय, तो कुओं वनवा देना। चौधरी-नहीं, नहीं, ऐसा गज़ब न करना । इतना बड़ा विश्वासघात न करूँगा, चाहे घर मिट्टी ही में मिल जाय । लेकिन स्त्री ने इन बातों की ओर व्यान न दिया । वह लपककर भीतर गई, और थैलियो पर हाथ डालना ही चाहती थी कि एक चोख मारकर हट गई। उसकी सारी देह सितार के तार की भांति काँपने लगी। चौधरी ने घबड़ाकर पूछा-क्या हुआ, क्या ? तुम्हें चक्कर तो नहीं आ गया ? स्त्री ने ताज की ओर भयातुर नेत्रों से देखकर कहा-वह चुडैल वहाँ खड़ी है। चौधरी ने ताक की ओर देखकर कहा-कौन चुडैल ? सुझे तो कोई नहीं दीखता। स्त्री-मेरा तो कलेजा धक् धक् कर रहा है , ऐसा मालूम हुआ, जैसे उस वुढ़िया ने मेरा हाथ पकड़ लिया । चौधरी-यह सव भ्रम है । बुढ़िया को मरे पांच साल हो गये, अब तक यहाँ बैठी है ? स्त्री-मैंने साफ देखा, वही थी। बच्चा भी कहते थे कि उन्होने रात को उसे थैलियों पर हाथ रखे देखा था ! चौधरी-वह रात को मेरी कोठरी में कव आया ? स्त्री-तुमसे कुछ रुपयो के विषय हो मे कहने आया था। उसे देखते ही भागा।