पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/२२१

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सोहाग का शव २१७ की बातें उसके कानों में गूंजती रहीं। अव उसे इसमें कोई सन्देह न या कि उसी के प्रेम में सुभद्रा यहाँ आई थो। सारी परिस्थिति उसको समझ मे आ गई थी। उस भीषण त्याग का अनुमान करके उसके रोएँ खड़े हो गए। यहाँ सुभद्रा ने चया-क्या कष्ट झेले होंगे, कैसी-कैसी यातनाएँ सही होंगी, सब उसीके कारण ! वह उसपर भार न बनना चाहती थी, इसीलिए तो उसने अपने आने को सूचना तक उसे न दो। अगर उसे पहले से मालूम होता कि सुभद्रा यहाँ आ गई है, तो कदाचित् उसे उस युवती की ओर इतना आकर्षण ही न होता। चौकीदार के सामने चोर को घर में घुसने का साहस नहीं होता। सुभद्रा को देखकर उसकी कर्तव्य- चेतना जाग्रत हो गई। उसके पैरों पर गिरकर उससे क्षमा मांगने के लिए उसका मन अधीर हो उठा। वह उसके मुंह से सारा वृत्तान्त सुनेगा । यह मौन उपेक्षा उसके लिए असह्य थी। दिन तो केशव ने किसी तरह काटा, लेकिन ज्योंही रात को दस बजे, वह सुभद्रा से मिलने चला । युवती ने पूछा - "कहाँ जाते हो?" केशव ने वूट का लेस बांधते हुए कहा- 'जरा एक प्रोफेसर से मिलना है. इस वक्त आने का वादा कर चुका हूँ।' "जल्द आना।" बहुत जल्द आऊँगा।" केशव घर से निकला, तो उसके मन में कितनी ही विचार-तरगें उठने लगी। कहीं सुसद्रा मिलने से इनकार कर दे, तो नहीं ऐसा नहीं हो सकता । वह इतनी अनुदार नहीं है। हाँ, यह हो सकता है कि वह अपने विषय में कुछ न कहे। उसे शात करने के लिए उसने एक व्यथा की कल्पना कर डालो। ऐसा वोमार या कि बचने की आशा न थी। उर्मिला ने ऐसा तन्मय होकर उसको सेवा-शुश्रुषा की कि उसे उससे प्रेम हो गया। व्यथा का सुभद्रा पर जो असर पड़ेगा, इसके विषय मे केशव को कोई सदेह न था। परिस्थिति का बोध होने पर वह उसे क्षमा कर देगी। लेकिन इसका फल क्या होगा ? क्या वह दोनों के साथ एक-सा प्रेम कर सकता है ? सुभद्रा को देख लेने के वाद उर्मिला को शायद उसके साथ रहने में आपति न हो। आपत्ति हो ही कैसे सकती है। उससे यह बात छिपी नहीं है। हाँ, यह देखना है कि सुभद्रा भी इसे स्वीकार करती है या नहीं। उसने जिस उपेक्षा का परिचय दिया है, उसे देखते हुए तो उसके मानने में सदेह ही जान पड़ता है। मगर वह उसे मनावेगा,