२१६ मानसरोवर " कर उसकी तरफ़ से सफाई दो-केशव स्त्री और पुरुष, दोनों ही को समान अधिकार देना चाहते हैं। केशव डूब रहा था, तिनके का सहारा पाकर उसकी हिम्मत बंध गई । बोला "विवाह एक प्रकार का समझौता है। दोनो पक्षो को अधिकार है, जब चाहे, उसे तोड़ दें।" युवती ने हामी भरी-सभ्य-समाज में यह आंदोलन बड़े जोरों पर है। सुभद्रा ने शका की-किसी समझौते को तोड़ने के लिये कारण भी तो होना चाहिए? केशव ने भावों की लाठी का सहारा लेकर कहा -"जब इसका अनुभव हो जाय कि हम इस वधन से मुक्त होकर अधिक सुखो हो सकते हैं, तो यहो कारण काफी है । स्त्री को यदि मालूम हो जाय कि वह दूसरे पुरुष के साथ सुभद्रा ने बात काटकर कहा-क्षमा कीजिए मि० केशव, मुझमें इतनी बुद्धि नहीं कि इस विषय पर आपसे बहस कर सकूँ । आदर्श समझौता वही है, जो जीवन- पर्यन्त रहे । मैं भारत की नहीं कहती। वहां तो स्त्री पुरुष की लौंड़ी है । मैं इगलैंड की कहती हूँ। यहाँ भी कितनी ही औरतों से मेरी बातचीत हुई है। वे तलाकों की बढती हुई सख्या को देखकर खुश नहीं होती। विवाह का सबसे ऊँचा आदर्ग उसकी पवित्रता और स्थिरता है। पुरुषों ने सदैव इस आदर्श को तोड़ा है, स्त्रियों ने निवाहा है। अब पुरुषों का अन्याय स्त्रियों को किस ओर ले जायगा, नहीं कह सकती। इस गभीर और सयत कथन ने विवाद का अत कर दिया । सुभद्रा ने चाय मॅग- वाई। तीनों आदमियो ने पो। केशव पूछना चाहता था, अभी आप यहाँ कितने दिनों रहेंगी, लेकिन न पूछ सका। वह यहां पद्रह मिनट और रहा, लेकिन विचारों में डूबा हुआ। चलते समय उससे न रहा गया। पूछ ही धैठा--"अभी आप यहाँ कितने दिन और रहेंगी? सुभद्रा ने ज़मीन की ओर ताकते हुए कहा -"कह नहीं सकती।" "कोई ज़रूरत हो, तो मुझे याद कीजिएगा।" "इस आश्वासन के लिए आपको धन्यवाद।" केशव सारे दिन बेचैन रहा । सुभद्रा उसकी आँखो में फिरतो रही। सुभद्रा . -
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