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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/२२३

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सोहाग का शव २१९ < ८ तो फिर मैं उन्हें बुला लाऊँ ?" "हाँ, उचित तो यही है।" "बहुत दूर जाना पड़ेगा। केशव कुछ ठिठकता हुआ जीने को ओर चला, तो मालकिन ने फिर कहा- मैं समझती हूँ, आप इसे लिये ही जाइए, व्यर्थ आप को क्यों दौड़ाऊँ । मगर कल मेरे पास एक रसीद भेज दीजिएगा । शायद उसकी जरूरत पड़े। यह कहते हुए उसने एक छोटा-सा पैकेट लाकर केशव को दे दिया। केशव पैकेट लेकर इस तरह भागा, मानो कोई चोर भागा जा रहा हो। इस पैकेट में क्या है, यह जानने के लिए उसका हृदय व्याकुल हो रहा था। उसे इतना विलब असह्य था कि अपने स्थान पर जाकर उसे खोले। समीप ही एक पार्क था। वहाँ जाकर उसने बिजली के प्रकाश में उस पैकेट को खोल डाला। उस समय उसके हाथ कॉप रहे थे और हृदय इतने वेग से धड़क रहा था, मानो किसी वधु की बीमारी के समाचार के बाद तार मिला हो। पैकेट का खुलना था कि केशव की आँखों से आंसुओं की झड़ी लग गई। उसमें एक पीले रंग की साड़ी थी, एक छोटी-सी सेंदुर की डिबिया और एक केशव का फोटो-चित्र । साथ ही एक लिफाफा भी था। केशव ने उसे खोलकर पढ़ा । उसमें लिखा था- "वहन, मैं जाती हूँ। यह मेरे सोहाग का शव है। इसे टेम्स नदी में विसर्जित कर देना। तुम्हीं लोगों के हाथों यह सस्कार भी हो जाय, तो अच्छा । तुम्हारी सुभद्रा" केशव मर्माहत-सा, पत्र हाथ में लिये वहीं घास पर लेट गया और फूट-फूटकर रोने लगा।