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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/२५२

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२४८ मानसरोवर हैं। न उनके बल-बच्चों ही को कुछ होता है, न उन्हींको हैजा पकड़ता है। अधर्म उनको क्यों नहीं खा जाता, जो मुझीको खा जायगा। मैंने तो सत्यवादियो को सदा दुख झेलते ही देखा है। मैंने जो कुछ किया है, उसका सुख लूटेगा। तुम्हारे मन मे जो आये, करो। प्रात काल दफ्तर खुला तो काराजात सब गायब थे। मुशी छक्कनलाल बौखलाये- से घर में गये और मालकिन से पूछा- कागज़ात आपने उठवा लिये हैं ? भानुकुवरि ने कहा- मुझे क्या खवर, जहाँ आपने रखे होंगे, वहीं होंगे। फिर तो सारे घर में खलबली पड़ गई। पहरेदारों पर मार पड़ने लगी । भानुकुवरि को तुरत मु शी सत्यनारायण पर सदेह हुआ, मगर उनकी समझ में छकनलाल की सहायता के विना यह काम होना असभव था। पुलिस में रपट हुई । एक ओझा नाम निकालने के लिए बुलाया गया । मोलवी साहब ने कुर्रा फेंका। ओझा ने बताया, यह किसी पुराने बेरी का काम है । मौलवी साहब ने फर्माया, किसी घर के भेदिये ने यह हरकत की है। शाम तक यह दौड़ धूप रही। फिर यह सलाह होने लगी कि इन कागज़ात के वगैर मुकदमा कैसे चलेगा। पक्ष तो पहले ही निर्वल था। जो कुछ बल था, वह इसी बही-खाते का था । अब तो वे सबूत भी हाथ से गये। दावे में कुछ जान ही न रही, मगर भानुकुवरि ने कहा-बला से हार जायेंगे। हमारी चीज कोई छीन ले, तो हमारा धर्म है कि उससे यथाशक्ति लड़ें, हारकर बैठ रहना कायरो का काम है। सेठजी (वकील) को इस दुर्घटना का समाचार मिला तो उन्होंने भी यही कहा कि अब दावे मे ज़रा भी जान नहीं है। केवल अनुमान और तर्क का भरोसा है। अदालत ने माना तो माना, नहीं तो हार माननी पड़ेगी, पर भानुकुंवरि ने एक न मानी । लखनऊ और इलाहाबाद से दो होशियार वैरिस्टर बुलाये । मुकदमा । शुरू हो गया। सारे शहर मे इस मुकदमे, की धूम थी। कितने ही रईसों को भानुकुंवरि ने साथी बनाया था। मुकदमा शुरू होने के समय हज़ारों आदमियो को भीड़ हो जाती थी। लोगों के इस खिंचाव का मुख्य कारण यह था कि भानुकुवरि एक पदें की आड़ मे बेठी हुई अदालत की कार्रवाई देखा करती थी', क्योकि उसे अब अपने नौकरी पर ज़रा भी । वादी वैरिस्टर ने, एक'चड़ी मार्मिक वक्तृता दी । उसने सत्यनारायण की पूर्वावस्या , न था ।