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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/२५३

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ईश्वरीय न्याय २४९ का खूब अच्छा चित्र खींचा। उसने दिखलाया कि वे कैसे स्वामिभक्त, कैसे कार्य-कुशल, कैसे कर्म-शील थे और स्वर्गवासी पण्डित मृगुदत्त का उनपर पूर्ण विश्वास हो जाना क्रिम तरह स्वाभाविक था। इसके बाद उसने सिद्ध किया कि मु शो सत्यनारायण को आर्थिक अवस्था कभी ऐसी न थी कि वे इतना धन सचय करते । अन्त में उसने मुशीजी को स्वाथपरता, कूटनीति, निर्दयता और विश्वासघातकता का ऐसा घृणोत्पादक चित्र सींचा कि लोग मु शोजी को गालियां देने लगे। इसके साथ ही उसने पण्डितजी के अनाथ बालकों की दशा का बड़ा ही काणोत्पादक वर्णन किया-- कैसे शोक और लज्जा को बात है कि ऐसा चरित्रवान्, ऐसा नीतिकुशल मनुष्य इतना गिर जाय कि अपने स्वामी के अनाथ बालकों की गर्दन पर छुरी चलाने में सकोच न करे । मानव-पतन का ऐया करुण, ऐसा हृदयविदारक उदाहरण मिलना कठिन है, इस कुटिल कार्य के परिणाम की दृष्टि से इस मनुष्य के पूर्व-परिचित सद्गुणों का गौरव लुप्त हो जाता है। क्योंकि वह अमली मोतो नहीं, नकली कांच के दाने थे, जो केवल विश्वास जमाने के निमित्त दर्शाये गये थे। वह केवल सुन्दर जाल था, जो एक सरल हृदय और छल छन्दों से दूर रहनेवाले 'रईस को फंसाने के लिए फैलाया गया था। इस नर-पशु का अन्त करण कितना अन्य कारमय, क्तिना कपटपूर्ण, कितना कठोर है और इसकी दुष्टता कितनी घार और कितनी अपावन है ! अपने शत्रु के साथ दया करना तो एक बार क्षम्य है , मगर इस मलिन हृदय मनुष्य ने स्न बेकसों के साथ दगा किया है, जिनपर मानव-स्वभाव के अनुसार दया करना उचित है । यदि आज हमारे पास वही-खाते मौजूद होते, तो अदालत पर सत्यनारायण को सत्यता स्पष्ट रूप से प्रस्ट हो जाती; पर मु शीजी के बरसास्त होते हो दफ्तर से उनका लुप्त हो जाना भी अदालत के लिए एक बड़ा सबूत है । शहर के कई रईसों ने गवाही दो, पर सुनी-सुनाई वाते जिरह में उखड़ गई । दूसरे दिन फिर सुक्दमा पेश हुआ । प्रतिवादी के वकील ने अपनी वक्तृता शुरू की । उसमे गभीर विचारों की अपेक्षा हास्य का आधिक्य था-"यह एक विलक्षण न्यायसिद्धान्त है कि किसी वनाढ्य मनुष्य का नौकर जो कुछ खरोदे, वह उसके स्वामी की चीज समझी जाय । इस सिद्धान्त के अनु- सार हमारी गवर्नमेंट को अपने कर्मचारियों की सारी सपत्ति पर कब्जा कर लेना चाहिए। यह स्वीकार करने मे हमको कोई आपत्ति नहीं कि हम इतने रुपयों का प्रबन्ध न कर सकते थे और यह धन हमने स्वामी हो से ऋण लिया , पर हमसे ऋण चुकाने का