पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/२६

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२२ मानसरोवर सोना-देख लेना, आज वह तुम्हें पछाड़ेगा। उसके पेट में तो शनीचर है। मोटे-बुद्धि की सर्वत्र प्रधानता रहती है । यह न समझो कि भोजन करने की कोई विद्या ही नहीं। इसका भी एक शास्त्र है, जिसे मथुरा के शनीचरानन्द महाराज ने रचा है । चतुर आदमी थोड़ी-सी जगह में गृहस्थी का सब सामान रख देता है । अनाड़ी बहुत-सी जगह में भी यही सोचता रहता है कि कौन वस्तु कहाँ र । गँवार आदमी पहले से ही हबक-हवककर खाने लगता है और चट एक लोटा पानी पीकर अफर जाता है। चतुर आदमी बड़ी सावधानी से खाता है, उसको कौर नीचे उतारने के लिए पानी की आवश्यकता नहीं पड़ती। देर तक भोजन करते रहने से वह सुपाच्य भी हो जाता है। चिन्तामणि मेरे सामने क्या ठहरेगा ! ( ७ चिन्तामणिजी अपने आँगन में उदास वैठे हुए थे। जिस प्राणी को वह अपना परमहितैषी समझते थे, जिसके लिए वे अपने प्राण तक देने को तैयार रहते थे, उसी ने आज उनके साथ बेवफाई की। बेवफाई ही नहीं की, उन्हें उठाकर दे मारा। पण्डित मोटेराम के घर से तो कुछ जाता न था। अगर वे चिन्तामणिजी को भी साथ लेते जाते, तो क्या रानी साहव उन्हें दुत्कार देतीं। स्वार्थ के आगे कौन किसको पूछता है ? उन अमूल्य पदार्थों की कल्पना करके चिन्तामणि के मुँह से लार टपकी पड़ती थी। अब सामने पत्तल आ गई होगी ! अब थालों में अमिरतियाँ लिये भण्डारीजी आये होंगे । ओहो, कितनी सुन्दर, कोमल, कुरकुरी, रसीली, अमिरतियाँ होंगी । अब बेसन के लड्डू आये होंगे । ओहो, कितने सुडौल, मेवों से भरे हुए, घी से तरातर लड्डू होंगे। मुँह में रखते-ही-रखते घुल जाते होंगे, जीभ भी न डुलानी पड़ती होगी। अहा | अब मोहन-भोग आया होगा | हाय रे दुर्भाग्य । मैं यहाँ पड़ा सड़ रहा हूँ और वहाँ यह बहार ! बड़े निर्दयी हो मोटेराम, तुमसे इस निष्ठुरता की आशा न थी। अमिरतीदेवी बोली-तुम इतना दिल क्यों छोटा करते हो। पितृपक्ष तो आ ही रहा है, ऐसे-ऐसे न जाने कितने नेवते आयेंगे। चिन्तामणि |-आज किसी सभागे का मुंह देखकर उठा था। लाओ तो पत्रा, देखू, कैसा मुहूर्त है । अव नहीं रहा जाता । सारा नगर छान डालूँगा, कहीं तो पता चलेगा, नासिका तो दहनी चल रही है।