पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/२६३

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ममता २५६ था। वे बहुत विनीत भाव से बोले-भाई साहब, मैं वड़ी जल्दी में हूँ। इस समय मेरे ऊपर कृपा कीजिए। मैं कल स्वय उपस्थित हूँगा । सेठजी एक माननीय और धन सम्पन्न आदमी थे। वे रामरक्षा के इस कुरुचिपूर्ण व्यवहार पर जल गये। मैं इनका महाजन, इनसे धन में, मान में, ऐश्वर्य में, बढा हुआ, चाहूँ तो ऐसों को नौकर रख लूं, इनके दरवाजे पर आऊँ और आदर-सत्कार की जगह उल्टे ऐसा रूखा बर्ताव । वह हाथ वाँधे मेरे सामने न खड़ा रहे, किन्तु क्या मैं पान, इलायची इन आदि से भी सम्मान करने के योग्य नहीं 2 वे तनकर बोले-अच्छा, तो कल हिसाव साफ हो जाय । रामरक्षा ने अकड़कर उत्तर दिया-हो जायगा। रामरक्षा के गौरवशील हृदय पर सेठजी के इस बर्ताव का प्रभाव कुछ कम खेद- जनक न हुआ। इस काठ के कुन्दे ने आज मेरी प्रतिष्ठा धूल में मिला दी। वह मेरा अपमान कर गया। अच्छा, तुम भी इसी दिल्ली में रहते हो और हम भी यहीं हैं। निदान दोनों में गांठ पड़ गई। बाबू साहव को तबीयत ऐसी गिरी और हृदय में ऐसी चिन्तो उत्पन्न हुई की पार्टी में जाने का ध्यान जाता रहा, वे देर तक इसी उलझन में पड़े रहे। फिर सूट उतार दिया और सेवक से बोले-जा, मुनीमजी को बुला ला ! मुनीमजी आये, उनका हिसाब देखा गया, फिर बैंकों का एकाउण्ट देखा, किन्तु ज्यों-ज्यों इस घाटी में उतरते गये, त्यों-त्यों अँधेरा वढता गया। वहुत कुछ टटोला, कुछ हाथ न आया। अन्त मे निराश होकर वे आराम-कुर्सी पर पड़ गये और उन्होंने एक ठण्डी साँस ले ली । दूकानों का माल बिका, किन्तु रुपया बकाया में पड़ा हुआ था। कई ग्राहकों की दूकानें टूट गई और उनपर जो नकद रुपया बकाया था, वह डूब गया। कलकत्ते के अढतियों से जो माल मंगाया था, रुपये चुकाने की तिथि सिर पर आ पहुँची और यहाँ रुपया वसूल न हुआ। दुकानों का यह हाल, बैंकों का इससे भी बुरा। रात-भर वे इन्हीं चिन्ताओं में करवटें बदलते रहे । अव क्या करना चाहिए ? गिरधारीलाल सजन पुरुष है । यदि सारा कच्चा हाल उसे सुना दूं तो अवश्य मान जायगा, किन्तु यह कष्टप्रद कार्य होगा कैसे ? ज्यों-ज्यों प्रात काल समीप आता था, त्यों-त्यों उनका दिल बैठा जाता था। कच्चे विद्यार्थी को जो दशा परीक्षा के सन्निकट आने पर होती है, वही हाल इस समय रामरक्षा का था। वे पलग से न उठे । मुंह-हाथ भी न धोया, खाने की कौन कहे। इतना जानते थे कि दुःख पड़ने पर कोई किसीका माथी नहीं होता, इसलिए एक