ममता २६७ थे, गिर पड़े। वे बोले ---उसने मेरो बहुत हानि की है । उसका घमड तोड़ डालूंगा, तब छोडूगा। स्त्री-तो क्या कुछ मेरे बुढापे का, मेरे हाथ फैलाने का, कुछ अपनी बड़ाई का विचार न करोगे ? बेटा, ममता बुरी होती है। ससार से नाता टूट जाय, धन जाय, धर्म जाय , किन्तु लड़के का स्नेह हृदय से नहीं जाता। सतोप सब कुछ कर सकता है। किन्तु बेटे का प्रेम माँ के हृदय से नहीं निकाल सकता। इसपर हाकिम का, राजा का, यहाँ तक कि ईश्वर का भी बस नहीं है। तुम मुझपर तरस खाओ। मेरे लड़के को जान छोड़ दो, तुम्हें बड़ा यश मिलेगा। मैं जब तक जीऊँगी, तुम्हें आशी- दि देती रहेगी। सेठजी का हृदय कुछ पसीजा। पत्थर को तह मे पानी रहता है, किन्तु तत्काल हो उन्हें मिसेज़ रामरक्षा के पत्र का ध्यान आ गया । वे बोले- मुझे रामरक्षा से कोई उतनी शत्रुता नहीं थी। यदि उन्होंने मुझे न छेडा होता, तो मैं न बोलता । आपके कहने से मैं अब भी उनका अपराव क्षमा कर सकता हूँ। परन्तु उनकी वीवी साहवा ने जो पत्र मेरे पास भेजा है, उसे देखकर शरीर में आग लग जाती है। दिखाऊँ आपको ? रामरक्षा की मां ने पत्र लेकर पढा तो उनकी आँखों में आंसू भर आये। वे बोली - बेटा, उस स्त्री ने मुझे बहुत दुख दिया है। उसने मुझे देश से निकाल दिया। उसका मिजाज और जवान उसके वश में नहीं , किन्तु इस समय उसने जो गर्व दिखाया है, उसका तुम्हें ख्याल नहीं करना चाहिए। तुम इसे भुला दो। तुम्हारा देश-देश में नाम है । यह नेको तुम्हारे नाम को और भी फैला देगी। मैं तुमसे प्रण करती हूँ कि सारा समाचार रामरक्षा से लिखवाकर किसी अच्छे समाचार-पत्र में छपवा देंगी। रामरक्षा मेरा कहना नहीं टालेगा। तुम्हारे इरा उपकार को वह कभी न भूलेगा। जिस समय ये समाचार सवादपत्रो में छपेंगे, उस समय हजारों मनुष्यों को तुम्हारे दर्शन की अभिलापा होगी। सरकार में तुम्हारी बडाई होगी और मैं सच्चे हृदय से कहती हूँ कि शीघ्र ही तुम्हे कोई-न-कोई पदवी मिल जायगी। रामरक्षा की अँगरेज़ों से बहुत मित्रता है, वे उसको वात कभी न टालेंगे। सेठजी के हृदय मे गुद्गुदी पैदा हो गई। यदि इस व्यवहार से वह पवित्र और माननीय स्थान प्राप्त हो जाय-जिसके लिए हज़ारों खर्च किये, हजारो डालियाँ दी, हजारो अनुनय-विनय की, हज़ारो खुशामदें की, खानसामो की झिड़कियां सही, बँगलों -
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