पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/२७२

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२६८ मानसरोवर के चक्कर लगाये- तो इस सफलता के लिए ऐसे कई हज़ार में खर्च कर सकता हूँ। निस्संदेह मुझे इस काम में रामरक्षा से बहुत कुछ सहायता मिल सकती है ; किन्तु इन विचारों को प्रकट करने से क्या लाभ ? उन्होंने कहा-माता, मुझे नाम-नमूद की बहुत चाह नहीं है। बड़ों ने कहा है-'नेकी कर और दरिया मे डाल । मुझे तो आपकी बात का ख्याल है। पदवी मिले तो लेने से इन्कार नहीं, न मिले तो उसकी तृष्णा नहीं, परन्तु यह तो वताइए कि मेरे रुपयों का क्या प्रबन्ध होगा ? आपको मालूम होगा कि मेरे दस हज़ार रुपये आते हैं। रामरक्षा की माँ ने कहा-तुम्हारे रुपये की जमानत मैं करती हूँ। यह देखो, बगाल-बक की पास-बुक है । उसमें मेरा दस हजार रुपया जमा है। उस रुपये से तुम रामरक्षा को कोई व्यवसाय करा दो। तुम उस दूकान के मालिक रहोगे, रामरक्षा को उसका मैनेजर वना देना । जब तक वह तुम्हारे कहे पर चले, तब तक निभाना , नहीं तो दूकान तुम्हारी है। मुझे उसमें से कुछ नहीं चाहिए । मेरी खोज-खबर लेनेवाला ईश्वर है। रामरक्षा अच्छी तरह रहे, इससे अधिक मुझे और कुछ न चाहिए। यह कहकर पास-बुक सेठजी को दे दी । माँ के इस अथाह प्रेम ने सेठ जी को विह्वल कर दिया । पानी उबल पड़ा और पत्थर उसके नीचे ढक गया। ऐसे पवित्र दृश्य देखने के लिए जीवन में कम अवसर मिलते हैं। सेठजी के हृदय में परोपकार की एक लहर- सी उठी । उनकी आँखें डबडबा आई । जिस प्रकार पानी के बहाव से कभी-कभी बाँध , टूट जाता है, उसी प्रकार परोपकार की इस उमग ने स्वार्थ और माया के बाँध को तोड़ दिया । वे पास-बुक वृद्धा स्त्री को वापस देकर बोले-माता, यह अपनी किताब लो। मुझे अब अधिक लज्जित न करो। यह देखो, रामरक्षा का नाम बही से उडा देता हूँ। मुझे कुछ नहीं चाहिए, मैंने अपना सब कुछ पा लिया। आज तुम्हारा रामरक्षा तुमको मिल जायगा। इस घटना के दो वर्ष उपरान्त टाउनहाल में फिर एक बड़ा जलसा हुआ बैंड बज रहा था, झडियां और ध्वजाएँ वायु-मण्डल में लहरा रही थीं। नगर के सभी माननीय पुरुष उपस्थित थे। लैंडो, फिटन और मोटरों से हाता भरा हुआ था। एका- एक मुश्की घोड़ों की एक फिटन ने हाते में प्रवेश किया। सेठ गिरधारीलाल बहुमूल्य वस्त्रों से सजे हुए उसमें से उतरे। उनके साथ एक फैशनेवुल नवयुवक अंगरेजो सूट पहने मुसकराता हुआ उतरा। ये मिस्टर रामरक्षा थे। वे अब सेठजी की एक खास