२९४ मानसरोवर पड़ा कि मेरे मुख में कालिख पुती हुई है, मेरा कद कुछ छोटा हो गया है। उन्होंने जिस वक्त नोट उड़ाये थे, उन्हें । गुमान भी न था कि उसका यह फल होगा। वे केवल सुवोध को जिच करना चाहते थे। उनका सर्वनाश करने की इच्छा न थी। शोकातुर विधवा ने सिसकते हुए कहा-भैयाजी, हम लोगों को वे मझधार छोड़ गये। अगर मुझे मालूम होता कि मन में यह बात ठान चुके हैं तो अपने पास जो कुछ था, वह सब उनके चरणों पर रख देती। मुझसे तो वे यही कहते रहे कि कोई-न-कोई उपाया हो जायगा । आप ही 'की मारफत वे कोई महाजन ठीक करना चाहते थे। आपके ऊपर उन्हें कितना भरोसा था कि कह नहीं सकती। मदारौलाल को ऐसा मालूम हुआ कि कोई उनके हृदय पर नश्तर चला रहा है। उन्हें अपने कठ में कोई चीज़ फंसी हुई जान पड़ती थी। रामेश्वरी ने फिर कहा-रात सोये तव खूब हँस रहे थे। रोज की तरह दूध पिया, बच्चों को प्यार किया, थोड़ी देर हारमोनियम बजाया और तब कुल्ली करके लेटे । कोई ऐसी बात न थी जिससे लेशमात्र भी सन्देह होता। मुझे चिन्तित देख- कर बोले--तुम व्यर्थ घबराती हो। बावू मदारीलाल से मेरी पुरानी दोस्ती है, भाखिर वह किस दिन काम आयेगी । मेरे साथ के खेले हुए हैं । इस नगर में उनका सबसे परिचय है। रुपयों का प्रवन्ध आसानी से हो जायगा। फिर न जाने कब मन में यह बात समाई । मैं नसीबो-जली ऐसी सोई कि रात को मिनकी तक नहीं। क्या जानूं कि वे अपनी जान पर खेल जायेंगे। मदारीलाल को सारा विश्व आँखों से तैरता हुआ मालूम हुआ। उन्होंने बहुत जब्त किया ; मगर आँसुओं के प्रवाह को न रोक सके । रामेश्वरी ने आँखें पोंछकर फिर कहा-भैयाजी, जो कुछ होना था वह तो हो चुका ; लेकिन आप उस दुष्ट का पता ज़रूर लगाइए जिसने हमारा सर्वनाश कर दिया है। यह दप्तर ही के किसी आदमी का काम है। वे तो देवता थे, मुझसे यही कहते रहे कि मेरा किसी पर सन्देह नहीं है , पर है यह किसी दपतरवाले हो का काम । आप- से केवल इतनी विनती करती हूँ कि उस पापी को बचकर न जाने दीजिएगा। पुलिस वाले शायद कुछ रिशवत लेकर उसे छोड़ दें। आपको देखकर उनका यह हौसला न होगा । अब हमारे सिर पर आपके सिवा और कोन है । किससे अपना दुख कहें। को यह दुर्गति होनी भी लिखी थी। .
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