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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/३१६

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मानसरोवर + ज्यो-ज्यो आगे बढते थे, त्यों-त्यो उनकी तबीयत अपनो कायरता और बोदेपन पर और भी झल्लाती थी। अगर वह उचककर उसके दो-चार थप्पड़ लगा देते, तो क्या होता-यही न कि साव के खानसामे, बहरे, सब उन पर पिल पडते और मारते-मारते वेदम कर देते । बाल-बच्चों के सिर पर जो कुछ पड़ती-पढ़ती। साहब को इतना तो मालूम हो जाता कि किसी गरीब को बेगुनाह ज़लील करना आसान नहीं। आखिर आज मैं मर जाऊँ तो क्या हो ? तव कोन मेरे बच्चों का पालन करेगा। तब उनके सिर जो कुछ पड़ेगी, वह आज ही पड़ जाती, तो क्या हर्ज था ? 1 इस अन्तिम विचार ने फतहचद के हृदय में इतना जोश भर दिया कि वह लौट पड़े और साहब से जिल्लन का बदला लेने के लिए दो-चार कदम चले , मगर फिर खयाल आया, आखिर जो कुछ जिल्लत होती थी, वह तो हो ही ली । कौन जाने, बँगला पर हो या क्लब चला गया हो। उसी समय उन्हे शारदा की बेकसी और बच्चो का विना वाप के हो जाने का खयाल भी आ गया । फिर लौटे और घर चले। ( ४ ) घर में जाते ही शारदा ने पूछा--किस लिए बुलाया था, बड़ी देर हो गई ? फ़तहवद ने चारपाई पर लेटते हुए कहा-नशे की सनक थी, और क्या ? शैतान ने मुझे गालियों दी, ज़लील किया, बस यही रट लगाये हुए था कि देर क्यों की। निर्दयी ने चपरासी से मेरा कान पकड़ने को कहा। शारदा ने गुस्से में आकर कहा-तुमने एक जूता उतारकर दिया नहीं सूअर को ? पतहचद-चपरासी बहुत शरीफ है । उसने साफ कह दिया- हुजूर, मुझसे यह काम न होगा। मैंने भले आदमियों की इज्जत उतारने के लिए नौकरी नहीं को थी। वह उसी वक्त सलाम करके चला गया। शारदा - यह बहादुरी है । तुमने उस साहव को क्यो नहीं फटकारा ? प्रतह चद. -फटकारा क्यों नहीं-मैंने भी खूब सुनाई । वह छड़ी लेकर दौड़ा- मैंने भी जूता सँभाला। उसने मुझे कई छड़ियाँ जमाई. -मैंने भी कई जूते लगाये। शारदा ने खुश होकर कहा-सच ? इताना-सा मुंह हो गया होगा उसका । फ़तहचद-चेहरे पर झाडू-सी फिरी हुई थी। -