पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/३२०

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मानसरोवर - इसकी मुझे परवाह नहीं ; मगर आज मैं तुमसे यिना कान पकड़ाये "नहीं जाऊँगा। कान पकड़कर वादा करो कि फिर किसी भले आदमी के साथ ऐसी बेअदबी न करोगे, नहीं तो मेरा दूसरा हाथ पड़ा ही चाहता है !, यह कहकर फतहचन्द ने फिर डण्डा उठाया। साहब को अभी तक पहलो चोट न भूली थी। अगर कहीं यह दूसरा हाथ पड़ गया, तो शायद खोपड़ी खुल जाय । कान पर हाथ रखकर बोले - अव आप खुश हुआ ? "फिर तो कभी किसी को गाली न दोगे ?' 'कभी नहीं।' 'अगर फिर कभी ऐसा किया, तो समझ लेना, मैं कहीं बहुत दूर नहीं हूँ।' 'अब किसी को-गाली न देगा।' 'अच्छी बात है। अब मैं जाता हूँ, आज से मेरा इस्तीफा है । मैं कल इस्तीफा में यह लिखकर भेजूंगा कि तुमने मुझे गालियां दी , इसलिए मैं नौकरी नहीं करना चाहता, समझ गये। साहर आप इस्तीफा क्यों देता है । हम तो बरखास्त नहीं करता। फतहचंद-अब तुम-जैसे पाजी आदमी की मातहतो न करूंगा। यह कहते हुए फतहवद कमरे से बाहर निकले और बड़े इतमीनान से घर चले। आज उन्हे सच्ची विजय की प्रसन्नता का अनुभव हुआ। उन्हे ऐसी खुशी कभी नहीं प्राप्त हुई थी । यही उनके जीवन की पहली जीत थी। 1 -