पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/३१९

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इस्तीफा ३१५ - - दूरन्देश आदमी की तरह उन्होंने यह कहा-ओहौं, हम समझ गया, आप हमसे नाराज़ हैं । हमने क्या आपको कुछ कहा है, आप क्या हमसे नाराज़ हैं ? फतहबद ने तनकर कहा-तुमने अभी आध घण्टा पहले मेरे कान पकड़े थे और मुझे सैकड़ों ऊल-जलूल बातें कही थी। क्या इतनी जल्दी भूल गये ? साहब-मैंने आपका कान पकड़ा, आ-हा हा-हा-हा ! मैंने आपका कान पकड़ा आ-हा-हा-हा ! क्या मज़ाक है ? क्या मैं पागल हूँ या दीवाना ? फतहचद - तो क्या मैं झूठ बोल रहा हूँ ! चपरासी गवाह है। आपके नौकर- चाकर भो देख रहे थे। साहब -कब का बात है? फतहबद-अभी, अभी कोई आध घण्टा हुआ, आपने मुझे बुलवाया था और बिना कारण मेरे कान पकड़े और धक्के दिये थे। साहव-ओ चाबूजी, उस वक्त हम नशा में था । बेहरा ने हमको बहुत दे दिया था। हमको कुछ खबर नहीं, क्या हुआ.माई गाड, हमको कुछ खबर नहीं। फतहचद-नशा में अगर तुमने मुझे गोली मार दी होती, तो क्या मैं मर न जाता ? अगर तुम्हे नशा था और नशा में सब कुछ मुभाफ है, तो मैं भी नशा में . हूँ। सुनो मेरा फैसला, या तो अपने कान पकड़ो कि फिर कभी किसी भले आदमी के सङ्ग ऐसा बर्ताव न करोगे'; या मैं आकर तुम्हारे कान पकडूंगा। समझ गये कि नहीं ? इधर-उधर हिलो नहीं, तुमने जगह छोड़ी और मैंने डण्डा चलाया। फिर खोपड़ी टूट जाय, तो मेरी खना नहीं। मैं जो कुछ कहता हूँ, वह करते चलो, पकड़ो कान । साहव ने वनावटी हँसी हंसकर कहा- वेल बाबूजी, आप बहुत दिल्लगी करता है । अगर हमने आपको बुरा वात कहा है, तो हम आपसे माफी मांगता है । फतहचद-(डण्डा तौलकर ) नहीं, कान पकड़ो ! साहब आसानी से इतना ज़िलत न सह सके । लपककर उठे और चाहा कि फतहबद के हाथ से लकड़ी छीन लें, लेकिन फतहचद गाफिल न था। साहव मेज़ पर से उठने भी न पाये थे कि उसने डण्डे का भरपूर और तुला हुआ हाय चलाया । साहय तो नगे सिर थे ही, चोट सिर पर पड़ गई । खोपड़ी भन्ना गई । एक मिनट तक सिर को पकड़े रहने के बाद बोले-हम तुमको बरखास्त कर देगा।