पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

निमन्त्रण २९ १, मोटे O 6 2 -वालकों को हरदम सब बातें स्मरण नहीं रहती। उसने तो आते-ही आते बता दिया था। . १ रानी-मैं फिर पूछती हूँ, इसमें आपकी क्या हानि है ? चिन्ता नाम पूछने में कोई हर्ज नहीं। मोटे० -तुम चुप रहो चिन्तामणि, नहीं तो ठीक न होगा। मेरे क्रोध को अभी तुम नहीं जानते । दवा वैलूंगा, तो रोते भागोगे। रानी-आप तो व्यर्थ इतना क्रोध कर रहे हैं। बोलो फेकूराम, चुप क्यों हो ? फिर मिठाई न पाओगे। चिन्ताo-महारानी की इतनी दया-दृष्टि तुम्हारे ऊपर है, बता दो बेटा ! मोटे०-चिन्तामणिजी, मैं देख रहा हूँ, तुम्हारे अदिन आये, है । वह नहीं बताता, तुम्हारा सामा-आये वहाँ से वड़े खैरख्वाह वन के। सोना- अरे हाँ, लरकन से ई सव पॅवार-से का मतलब । तुमका धरम परे मिठाई देव, न धरम परे न देव । 'ई का कि बाप का नाम, बताओ तब मिठाई देव । फेकूराम ने धीरे से कोई नाम लिया। इस पर पण्डितजी ने उसे इतने जोर से डाटा कि उसकी आधी बात मुँह में ही रह गई। रानी-क्यों डाटते हो, उसे बोलने क्यो नहीं देते 2 वोलो बेटा ! मोटे० ०-आप हमें अपने द्वार पर बुलाकर हमारा अपमान कर रही हैं । -इसमें अपमान की तो कोई बात नहीं है, भाई । मोटे. 0--अव हम इस द्वार पर कभी न आयेंगे। यहां सत्पुरुषों का अपमान किया जाता है। अलगू-कहिए तो मैं चिन्तामणि को एक पटकन मोटे -नहीं बेटा, दुष्टों को परमात्मा स्वय दण्ड देता है। चलो यहाँ से चलें। अब भूलकर भी यहाँ न आयेंगे। खिलाना न पिलाना, द्वार पर बुलाकर ब्राह्मणों का अपमान करना । तभी तो देश मे आग लगी हुई है। चिन्ताo-मोटेराम, महारानी के सामने तुम्हें इतनी कटु बातें न करनी चाहिए। मोटे.. वस, चुप ही रहना, नहीं तो सारा क्रोध तुम्हारे ही सिर जायगा । माता-पिता का पता नहीं, ब्राह्मण बनने चले हैं। तुम्हे कौन कहता है ब्राह्मण ? चिन्ता -जो कुछ मन चाहे, वह लो। चन्द्रमा पर थूमने से थूक अपने हो चिन्ता- 11 O-