मन्त्र बूढा- --अव तो आपकी निद्रा ट्टी है, हमारे साथ भोजन करोगे ? लीलाधर-मुझे कोई आपत्ति नहीं है। बूढा-मेरे लड़के से अपनी कन्या का विवाह कीजियेगा ? लीलावर---जब तक तुम्हारे जन्म-सस्कार न बदल जायें, जब तक तुम्हारे आहार- व्यवहार में परिवर्तन न हो जाय, हम तुमसे विवाह का सम्बन्ध नहीं कर सकते । मास खाना छोड़ो, मदिरा पीना छोड़ो, शिक्षा ग्रहण करो, तभी तुम उच्च वर्ण के हिन्दुओं में मिल सकते हो। बूढ़ा-हम कितने ही ऐसे कुलीन ब्राह्मणों को जानते हैं, जो रात-दिन नशे मे डूबे रहते है, मास के विना कौर नहीं उठाते , और कितने ही ऐसे हैं, जो एक अक्षर भी नहीं पड़े हैं ; पर आपको उनके साथ भोजन करते देखता हूँ। उनसे विवाह-सम्बन्ध करने में आपको कदाचित् इनकार न होगा । जव आप खुद अज्ञान में पड़े हुए हैं, तो हमारा उद्धार कैसे कर सकते है ? आपका हृदय अभी तक अभि- मान से भरा हुआ है। जाइए, अभी कुछ दिन और अपनी आत्मा का सुधार कीजिए। हमारा उद्धार आपके क्येि न होगा। हिन्दू समाज में रहकर हमारे माथे से नीचता का कलक न मिटेगा। हम कितने ही विद्वान् , कितने ही आचारवान् हो हो जायें, आप हमें यों ही नीच समझते रहेंगे। हिन्दुओं को आत्मा मर गई है, और उसका स्थान अहकार ने ले लिया है। हम अव उस देवता की शरण जा रहे है, जिसके माननेवाले हमसे गले मिलने को आज ही तैयार हैं। वे यह नहीं कहते कि तुम अपने सस्कार,बदलकर आओ। हम अच्छे हैं या बुरे, वे इसी दशा में हमें अपने पास बुला रहे हैं। आप अगर ऊँचे हैं, तो ऊँचे बने रहिए। हमें उड़ना न पढ़ेगा। लीलाधर- एक ऋपि-सतान के मुंह से ऐसी बातें सुनकर मुझे आश्चर्य हो रहा है । वर्ण-भेद तो ऋपियों ही का किया हुआ है। उसे तुम कैसे मिटा सकते हो ? बूढा-पियों को मत वदनाम कीजिए। यह सब पाखड आप लोगों का रचा हुआ है । आप कहते हैं--तुम मदिरा पोते हो ; लेकिन आप मदिरा पीनेवालों की जूतियां चाटते है। आप हमसे मास खाने के कारण घिनाते हैं, लेकिन आप गो- मास खानेवालों के सामने नाक रगड़ते हैं। इसीलिए न कि वे आपसे बलवान् है ? हम भी आज राजा हो जाये, तो आप हमारे सामने हाथ बांधे खड़े होंगे। आपके
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