मन्त्र उत्तर मिला -- हम इज़राईल के फरिश्ते हैं। तुम्हारी रूह कब्ज करने आये हैं । हज़रत इज़राईल ने तुम्हें याद किया है। पण्डितजी यो बहुत ही बलिष्ठ पुरुष थे, उन दोनों को एक धाके मे गिरा सकते थे। प्रात काल तीन पाव मोहनभोग और दो सेर दूध का नाश्ता करते थे। दोपहर के समय पाव-भर घो दाल में खाते, तीसरे पहर दूधिया भग छानते, जिसमे सेर-भर मलाई और आध सेर बादाम मिली रहती। रात को डटकर व्यालु करते; क्योंकि प्रात काल तक फिर कुछ न खाते थे। इस पर तुर्रा यह कि पैदल पग-भर भी न चलते थे । पालकी मिले, तो पूछना ही क्या, जैसे घर का पलँग उड़ा जा रहा हो। कुछ न हो, तो इक्का तो था ही , यद्यपि काशी मे दो-ही चार इक्केवाले ऐसे थे, जो उन्हें देखकर कह न दें कि 'इक्का खाली नहीं है। ऐसा मनुष्य नर्म अखाड़े में पट पड़कर ऊपरवाले पहलवान को थका सकता था, चुस्ती और फुती के अवसर पर तो वह रेत पर निकला हुआ कछुआ था । पण्डितजी ने एक बार कनखियो से दरवाजे की तरफ देखा । भागने का कोई मौका न था। तब उनमें साहस का सचार हुआ। भय की पराकाष्ठा ही साहस है। अपने सोटे की तरफ हाथ बढाया, और गरजकर बोले-निकल जाओ यहाँ से . ! बात मुंह से पूरी न निकली थी कि लाठियों का वार पड़ा। पण्डितजी मूच्छित होकर गिर पड़े। शत्रुओं ने समीप में आकर देखा, जीवन का कोई लक्षण न था। समझ गये, काम तमाम हो गया। लूटने का तो विचार न था पर जव कोई पूछनेवाला न हो, तो हाथ वढाने में क्या हर्ज 2 जो कुछ हाथ लगा, ले-देकर चलते बने। प्रात काल बूढ़ा भी उधर से निकला, तो सन्नाटा छाया हुआ था-न आदमी, न आदमज़ाद । छोलदारियां भी 'गायव ! चकराया, यह माजरा क्या है ! रात-ही भर में अलादीन के महल की तरह सव कुछ गायब हो गया। उन महात्माओं में से एक भी नज़र नहीं आता, जो प्रात काल मोहनभोग उड़ाते और सन्ध्या-समय भग घोटते दिखाई देते थे। जरा और समीप जाकर पण्डित लीलावर को रावटी मे झांका, तो कलेजा सन्न-से हो गया । पण्डितजी जमीन पर मुर्दे की तरह पड़े हुए थे। मुँह पर मक्तियाँ भिनक रही थीं । सिर के वालों में रक्त ऐसा जम गया था, जैसे किसी चित्रकार
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