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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/५

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मन्दिर
(१)

मातृ-प्रेम ! तुझे धन्य है। ससार में और जो कुछ है, मिथ्या है, निस्सार है । मातृ-प्रेम ही सत्य है, अक्षय है, अनश्वर है । तीन दिन से सुखिया के मुँह में न अन्न का एक दाना गया था, न पानी की एक बूंद । सामने पुआल पर माता का नन्हा- सा लाल पड़ा कराह रहा था ।आज तीन दिन से उसने आँखें न खोली थीं । कभी उसे गोद में उठा लेती, कभी पुआल पर सुला देती। हँसते-खेलते बालक को अचानक क्या हो गया, यह कोई नहीं बताता था। ऐसी दशा में माता को भूख और प्यास कहाँ ? एक बार पानी का एक घुट मुँह में लिया था, पर कण्ठ के नीचे न ले जा सकी। इस दुखिया की विपत्ति का वारपार न था। साल भर के भीतर दो वालक गंगा की गोद मे सौंप चुकी थी। पतिदेव पहले ही सिधार चुके थे। अब उस अभागिनी के जीवन का आधार, अवलम्ब, जो कुछ था, यही बालक था । हाय ! क्या ईश्वर इसे भी उसकी गोद से छीन लेना चाहते हैं ?--यह कल्पना करते ही माता की आँखों से झर-झर आंसू वहने लगते थे । इस बालक को वह एक क्षण-भर के लिए भी अकेला न छोड़ती थी। उसे साथ लेकर घास छीलने जाती। घास बेचने बाजार जाती, तो बालक गोद में होता। उसके लिए उसने नन्ही-सी खुरपी और नन्ही-सी खाँची वनवा दी थी। जियावन माता के साथ घास छीलता और गर्व से कहता-अम्माँ, हमे भी वढ़ी-सी खुरपी वनवा दो, हम वहुत-सी घास छीलेंगे ; तुम द्वारे माची पर बैठी रहना, अम्मां, मैं घास बेच लाऊँगा। माँ पूछती-हमारे लिए क्या-क्या लाओगे, बेटा जिया- वन लाल-लाल साड़ियो का वादा करता । अपने लिए बहुत-सा गुड़ लाना चाहता था। वे ही भोली-भोली वातें इस समय याद आ-आकर माता के हृदय को शूल के समान वेध रही थीं । जो बालक को देखता, यही कहता कि किसी की डीठ है, पर किसकी डीठ है ? इस विधवा का भी संसार में कोई वैरी है ? अगर उसका नाम मालूम हो जाता, तो सुखिया जाकर उसके चरणों पर गिर पड़ती और बालक को उसकी गोद में