पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/६

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मानसरोवर रख देती क्या उसका हृदय दया से न पिघल जाता ? पर नाम कोई नहीं बताता। हाय ! किससे पूछे, क्या करे ? (२) तीन पहर रात बीत चुकी थी। सुखिया का चिन्ता-व्यथित चञ्चल मन कोठे-कोठे दौड़ रहा था। किस देवी को शरण जाय, किस देवता की मनौती करे, इसी सोच में पड़े-पड़े उसे एक झपकी आ गई। क्या देखती है कि उसका स्वामी आकर बालक के सिरहाने खड़ा हो जाता है और बालक के सिर पर हाथ फेरकर कहता है-रो मत, सुखिया ! तेरा वालक अच्छा हो जायगा। कल ठाकुरजी की पूजा कर दे, वही तेरे सहायक होंगे। यह कहकर वह चला गया। सुखिया की आँख खुल गई। अवश्य ही उसके पतिदेव आये थे, इसमें सुखिया को ज़रा भी सन्देह न हुआ। उन्हें अव भी मेरी सुधि है, यह सोचकर उसका हृदय आशा से परिप्लावित हो उठा। पति के प्रति श्रद्धा और प्रेम से उसकी आँखें सजल हो गई। उसने बालक को गोद मे उठा लिया और आकाश की ओर ताकती हुई बोली-भगवन् ! मेरा बालक अच्छा हो जाय, मैं तुम्हारी पूजा करूँगी । अनाथ विधवा पर दया करो। उसी समय जियावन की आँखें खुल गई। उसने पानी मांगा । माता ने दौड़कर कटोरे में पानी लिया और बच्चे को पिला दिया । जियावन ने पानी पीकर कहा- अम्माँ, रात है कि दिन ? सुखिया-अभी तो रात है, बेटा, तुम्हारा जी कैसा है ? जियावन-अच्छा है, अम्माँ ! अव में अच्छा हो गया । मुखिया- तुम्हारे मुँह में घी-शकर, बेटा, भगवान् करे तुम जल्द अच्छे हो जाओ ! कुछ खाने को जी चाहता है ? जियावन-हाँ अम्माँ, थोड़ा-सा गुड़ दे दो। सुखिया-गुड़ मत खाओ भैया, अवगुन करेगा। कहो तो खिचड़ी बना दूं। जियावन -नहीं मेरी अम्मा, जरा-सा गुड़ दे दो, तो तेरे पैरों पहूँ। माता इस आग्रह को न टाल सकी। उसने थोड़ा-सा गुड़ निकालकर जियावन के हाथ में रख दिया और हाँड़ी का ढक्कन लगाने जा रही थी कि किसी ने बाहर से आवाज़ दी । हाँड़ी वहीं छोड़कर वह किवाड़ खोलने चली गई। जियावन ने गुड़ को दो पिण्डियाँ निकाल ली और जल्दी-जल्दी चट कर गया ।