पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/५८

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मानसरोवर यही उनके सामने सबसे बड़ी समस्या थी। अधिकारियों के पास वार-बार प्रार्थना-पत्र भेजे जा रहे थे कि इस मामले की छानबीन की जाय, और बार-बार यही जवाब मिलता था कि हत्याकारियों का पता नहीं चलता। उधर पण्डितजी के स्मारक के लिए चन्दा भी जमा किया जा रहा था। मगर इस नई ज्योति ने मुल्लाओं का रग फीका कर दिया। वहाँ एक ऐसे देवता का अवतार हुआ था, जो मुर्दो को जिला देता था, जो अपने भक्तों के कल्याण के लिए अपने प्राणों को 'बलिदान कर सकता था। मुल्लाओं के यहाँ यह सिद्धि कहाँ, यह विभूति कहाँ, यह चमत्कार कहाँ ? इस ज्वलन्त उपकार के सामने जन्नत और अखूबत (भ्रातृ-भाव ) की कोरी दलीलें कब ठहर सकती थी 2 पण्डितजी अव वह अपने ब्राह्मणत्व पर घमण्ड करनेवाले पण्डितजी न थे। उन्होंने शूद्रों और भीलों का आदर करना सीख लिया था। उन्हें छाती से लगाते हुए अव पण्डितजी को घृणा न होती थी। अपना घर अँधेरा पाकर ही ये इसलामी-दीपक की ओर झुके थे। जब अपने घर में सूर्य का प्रकाश हो गया, तो इन्हें दूसरों के यहाँ जाने की. क्या जरूरत थी। सनातन-धर्स की विजय हो गई। गाँव-गाँव में मन्दिर वनने लगे और शाम-सबेरे मन्दिरो से शख और घण्टे की ध्वनि सुनाई देने लगी। लोगों के आचरण आप-ही-आप सुधरने लगे। पण्डितजी ने किसी को शुद्ध नहीं किया। उन्हें अव शुद्धि का नाम लेते शर्म आती थी—मैं भला इन्हें क्या शुद्ध करूँगा, पहले अपने को तो शुद्ध कर लूँ। ऐसी निर्मल, पवित्र आत्माओं को शुद्धि के ढोंग से अपमानित नहीं कर सकता। यह मन्त्र था, जो उन्होंने उन चाण्डालों से सीखा था; और इसी के बल से वह अपने धर्म की रक्षा करने में सफल हुए थे। पण्डितजी अभी जीवित हैं, पर अब सपरिवार उसी प्रान्त में, उन्हीं भीलों के साथ, रहते हैं। 1 1