पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मन्त्र सहसा उन्हें एक कुत्ता दिखाई दिया । न-जाने किधर से आकर वह उनके सामने पगडडी पर चलने लगा। पण्डितजी चौंक पड़े , पर एक क्षण में उन्होंने कुते को पहचान लिया। वह बूढ़े चौधरी का कुत्ता मोती था। वह गाँव छोड़कर आज इधर इतनी दूर कैसे आ निकला ? क्या वह जानता था कि पण्डितजी दवा लेकर आ रहे होंगे, कहीं रास्ता न भूल जायें ? कौन जानता है, पण्डितजी ने एक वार मोती कहकर पुकारा, तो कुत्ते ने दुम हिलाई , पर रुका नहीं । वह इससे अधिक परिचय देकर समय नष्ट न करना चाहता था। पण्डितजी को ज्ञात हुआ कि ईश्वर मेरे साथ हैं, वही मेरी रक्षा कर रहे हैं। अब उन्हें कुशल से घर पहुँचने का विश्वास हो गया। दस बजते-बजते पण्डितजी घर पहुँच गये । गे रोग घातक न था; पर यश पण्डितजी को बदा था। एक सप्ताह के बाद तीनों रोगी चगे हो गये। पण्डितजी की कीति दूर-दूर तक फैल गई। उन्होंने यम-देवता से घोर सग्राम करके इन आदमियों को बचा लिया था। उन्होंने देवताओं पर भी विजय पा ली थी-असम्भव को सभव कर दिखाया था। वह साक्षात् भगवान् थे। उनके दर्शनों के लिए लोग दूर-दूर से आने लगे ; किन्तु पण्डितजी को अपनी कीर्ति से इतना आनन्द न होता था, जितना रोगियों को चलते-फिरते देखकर। चौधरी ने कहा-महाराज, तुम साच्छात भगवान् हो। तुम न आ जाते, तो हम न वचते। पण्डितजी वोले- मैंने कुछ नहीं किया। यह सव ईश्वर की दया है चौधरी-अब हम तुम्हें कभी न जाने देंगे। जाकर अपने बाल-बच्चों को ले आओ। पण्डितजी हाँ, मैं भी यही सोच रहा हूँ। तुमको छोड़कर अव नहीं जा सकता। (6) मुल्लाओं ने मैदान खाली पाकर आस-पास के देहातों में खूब जोर बांध रखा था। गौव-के गाँव मुसलमान होते जाते थे। उधर हिन्दू-सभा ने सन्नाटा खींच लिया था। किसी की हिम्मत न पड़ती थी कि इधर आये । लोग दूर बैठे हुए मुसलमानों पर गोला-बारूद चला रहे थे। इस हत्या का बदला कैसे लिया जाय,