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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/१२५

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१४० मानसरोवर 1 के पिता नमींदारी के काम में दक्ष थे। विमल सिंह का सब इलाका किसी-न- 'क्सिी प्रकार से उनके हाथ आ गया। विमल के पास सवारी का टट भी न था, उसे दिन में दो बार भोजन भी मुश्किल से मिलता था । उधर सुरेश के पास हाथी, मोटर और कई घोड़े थे, दस पाँच बाहर के आदमी नित्य द्वार पर पड़े रहते थे । पर इतनी विषमता होने पर भी दोनों में भाईचारा निभाया जाता था। शादी व्याह में, मूंडन-छेदन में परस्पर आना-जाना होता रहता था। सुरेश विद्या प्रेमी थे। हिंदुस्तान में ऊँची शिक्षा समाप्त करके वह यूरोप चले गये और सब लोगों की शकाओं के विपरीत, वहाँ से आर्य-सभ्यता के परम भक्त बनकर लौटे । वहाँ के जड़वाद, कृत्रिम भोगलिप्सा और अमानुषिक मदाधता ने उनकी आँखें खोल दी थीं । पहले वह घरवालों के बहुत जोर देने पर भी विवाह करने को राजी नहीं हुए थे । लड़की से पूर्व-परिचय हुए विना प्रणय नहीं कर सकते थे । पर यूरोप से लौटने पर उनके वैवाहिक विचारों में बहुत बड़ा परिवर्तन हो गया । उन्होंने उसी पहले की कन्या से, बिना उसके आचार-विचार जाने हुए, विवाह कर लिया । अब वह विवाह को प्रेम का बधन नहीं, धर्म का बधन समझते थे । उसी सौभाग्यवती वधू को देखने के लिए आज शीतला अपनी सास के साथ सुरेश के घर गयी थी । उसी के आभूषणों की छटा देखकर वह मर्माहत-सी हो गयी है । विमल ने व्यथित होकर कहा--तो माता-पिता से कहा होता, सुरेश से ब्याह कर देते । वह तुम्हें गहनों से लाद सकते थे । शीतला-तो गाली क्यों देते हो ? विमल गाली नहीं देता, वात कहता हूँ। तुम-जैसी सुन्दरी को उन्होंने नाहक मेरे साथ ब्याहा। शीतला-लजाते तो हो नहीं, उलटे और ताने देते हो ! विमल-भाग्य मेरे वश में नहीं है । इतना पढ़ा भी नहीं हूँ कि कोई बड़ी नौकरी करके रुपये कमाऊँ। शीतला- यह क्यों नहीं कहते कि प्रेम ही नहीं है। प्रेम हो, तो कचन बरसने लगे। विमल -तुम्हें गहनों से बहुत प्रेम है ? शीतला-सभी को होता है । मुझे भी है।