पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/१२७

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मानसरोवर जाती रही, फिर भी उससे ज्यादा मेहनती मजदूर बदर पर दूसरा न या । और मजदूर मजदूर थे, पर यह मजदूर तपस्वी था। मन में जो कुछ ठान लिया था, उसे पूरा करना ही उसके जीवन का एकमात्र उद्देश्य था । उसने घर को अपना कोई समाचार न भेजा । अपने मन से तर्क किया, ।। घर में कौन मेरा हितू है ? गहनों के सामने मुझे कौन पूछता है ? उसकी बुद्धि यह रहस्य समझने में असमर्थ थी कि श्राभूषणों क' लालसा रहने पर भी प्रणय का पालन किया जा सकता है और मजदूर प्रातःकाल सेरों मिठाई खाकर जल- पान करते थे । दिन-भर दम-दम भर पर गाँजे, चरस और तमाखू के दम लगाते थे । आकाश पाते, तो, बाजार की सैर करते थे । कितनों ही को शराब का भी शौक था। पैसों के बदले रुपये कमाते थे, तो पैसों की जगह रुपये खर्च भी कर डालते थे । किसी की देह पर साबूत कपड़े तक न थे, पर विमल उन गिनती के दो-चार मजदूरों में था जो सयम से रहते थे, जिनके जीवन का उद्देश्य खा पीकर मर जाने के सिवा कुछ और भी था । थोड़े ही दिनों में उसके पास थोड़ी-सी सपत्ति हो गयी । धन के साथ और मजदूरों पर दबाव भी बढने लगा। यह प्रायः सभी जानते थे कि विमल जाति का कुलीन ठाकुर है। सब ठाकुर ही कहकर उसे पुकारते थे । सयम और आचार सम्मान-सिद्धि के मत्र हैं। विमल मजदूरों का नेता और महाजन हो गया। विमल को रंगून में काम करते तीन वर्ष हो चुके थे। सध्या हो गयी थी। वह कई मजदूरों के साथ समुद्र के किनारे बैठा बातें कर रहा था । एक मजदूर ने कहा- यहाँ की सभी स्त्रियाँ निठुर होती हैं। वेचारा झींगुर १० बरस से उसी बर्मी स्त्री के साथ रहता था। कोई अपनी न्याही जोरू से भी इतना प्रेम न करता होगा। उस पर इतना विश्वास करता था कि जो कुछ कमाता, सो उसके हाथ में रख देता । तीन लड़के थे। अभी कल तक दोनों साथ-साथ खाकर लेटे थे। न कोई ल्हाई, न झगड़ा, न बात, न चीत । रात को औरत न जाने कब उठी और न जाने कहाँ चली गयी । लड़कों को छोड़ गयी । वेचारा झींगुर बैठा रो रहा है। सबसे बड़ी मुश्किल तो छोटे बच्चे की है । अभी कुल छ महीने का है। कैसे जियेगा, भगवान् ही जाने । विमलसिंह ने गभीर भाव से कहा-गहने बनवाता था कि नहीं ? 6.