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१६० मानसरोवर द्वार पर किसी ने धीरे से कहा-जाती क्यों नहीं, जागते तो हैं ? किसी ने जवाब दिया-लाज श्राती है। सुरेश ने आवाज पहचानी। प्यासे को पानी मिल गया। एक क्षण में मगला उनके सम्मुख पाई और सिर झुकाकर खड़ी हो गयी । सुरेश को उसके मुख पर एक अनूठी छवि दिखाई दी, जैसे कोई रोगी स्वास्थ्य-लाभ कर चुका हो। रूप वही था, पर आँखें और थीं।