पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/१४६

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आभूपण १५३ रात को जब वह भोजन करके लेटे, ता छोटी सालो पाकर बैठ गयी और मुसकिराकर बोली-जीजाजी, कोई सुन्दरी अपने रूप-हीन पुरुप को छोड़ दे, उसका अपमान करे, तो श्रार उसे क्या कहेंगे ? सुरेश-(गंभीर स्वर से ) कुटिला ! साली -और ऐसे पुरुप को, जो अपनी रूप हीन सी को त्याग दे ? सुरेश - पशु! साली--और जो पुरुप विद्वान् हो ? सुरेश-पिशाच! साली--( हँसकर ) तो मैं भागती हूँ। मुझे अापसे डर लगता है। मुरेश-पिशाचों का प्रायश्चित्त भी स्वीकार हो जाता है! साली--शर्त यह है कि प्रायश्चित्त सच्चा हो सुरेश [--यह तो वह अन्तर्यामी ही जान सकते हैं। साली---राना होगा, तो उसका फल भी अवश्य मिलेगा। मगर दीदी को लेकर इधर ही से लौटिएगा। सुरेश की अाशा-नौका फिर डगमगाई । गिड़गिड़ाकर बोले-प्रभा, ईश्वर के लिए मुझपर दया करो। मैं बहुत दुःखी है। साल-भर से ऐसा कोई दिन नहीं गया कि मैं रोकर न सोया हूँ। प्रभा ने उठकर कहा-अपने किये का क्या इलाज ? जाती है, आराम कीजिए। एक क्षण में मगला की माता ग्राकर बैठ गयी और बोली-वेटा, तुमने तो बहुत पढ़ा-लिखा है, देस-विदेस घूम आने हो, सुन्दर बनने की कोई दवा कहीं नहीं देखी? तुरेश ने विनय पूर्वक कहा-माताजी, अब ईश्वर के लिए और लजित न कोलिए। माता-तुमने तो मेरी पारी बेटी के प्राण ले दिये ! मैं क्या तुम्हें लजित परने से भो गयो ? जी में तो था कि ऐना ऐसी सुनाऊँगी कि तुम भी याद करोगे ; पर मेरे मेहमान हो, क्या जलाऊँ ! आराम करो। नुरेश आया और भय की दशा में पड़े करवटें बदल रहे थे कि एकाएक