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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/१७८

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घोखा सतीकुण्ड में खिले हुए कमल बसन्त के धीमे-धीमे झोंकों से लहरा रहे थे और प्रातःकाल की मन्द-मन्द मुनहरी किरणें उनमें मिल-मिलकर मुसकराती यो । राजकुमारी प्रभा कुण्ड के किनारे हरी-हरी घास पर खड़ी सुन्दा पक्षियों का कलरत्र सुन रही थी। उसका कनक-वर्ण तन इन्हीं फूलो की भाँति दमक रहा था। मानों प्रभात की साक्षात् सौम्य मूर्ति है, जो भगवान् अंशुमाली के किरणकरो द्वारा निर्मित हुई थी। प्रभा ने मौलसिरी के वृक्ष पर बैठी हुई एक श्यामा की ओर देखकर कहा- मेरा जी चाहता है कि मैं भी एक चिड़िया होती । उसकी सहेली उमा ने मुसकराकर पूछा-यह क्यो ? प्रभा ने कुण्ड की ओर ताकते हुए उत्तर दिया-वृक्ष की हरी-मरी हालियों पर बैठी हुई चहचहाती, मेरे कलरव से साग बाग गूंज उठता । उमा ने छेड़कर कहा-भौगढ़ की रानी ऐसी कितने ही पक्षियों का गाना जब चाहे सुन सकती हैं। प्रभा ने सकुचित होकर कहा- मुझे नौगढ़ की रानी बनने की अभिलापा नहीं है। मेरे लिए किसी नदी का सुनसान किनारा चाहिए । एक वीणा नीर ऐसे ही सुन्दर सुहावने पक्षियों की संगति । मधुर ध्वनि में मेरे लिए सारे संसार का ऐश्वर्य भरा हुआ है। प्रमा का सगीत पर अपरिमित प्रेम था। वह बहुधा ऐसे ही सुस-स्वप्न देखा करती थी। उमा उत्तर देना ही चाहती थी कि इतने में बाहर से किसी के गाने की आवाज भाई- कर गये थोड़े दिन की प्रीति प्रभा ने एकाग्र मन होकर सुना और अधीर होकर कहा- चदिन, इस वाणी में जादू है । मुझे अब विना सुने नहीं रहा जाता, इसे भीतर बुला लाओ। उस पर भी गीत का जादू असर कर रहा था। वह बोली-निःसन्देह ऐसा राग मैंने श्राजतक नहीं सुना, खिड़की खोलकर बुलाती है। १३