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१६२ मानसरोवर ज्ञान०-हों, अभी मरे नहीं है। सत्य० -अरे ! क्या बहुत बीमार हैं ! शान-माता ने विष खा लिया , तो वे उनका मुँह खोलकर दवा पिला रहे थे। माताजी ने जोर से उनकी दो उँगलियों काट ली। वही विष उनके शरीर में पहुँच गया। तब से सारा शरीर सूज पाया है। अस्पताल में पड़े हुए हैं, किसी को देखते हैं तो काटने दौड़ते हैं। बचने की आशा नहीं है । सत्य०-तब तो घर ही चौपट हो गया ! ज्ञान-ऐसे घर को अब से बहुत पहिले चौपट हो जाना चाहिए था। . . $ तीसरे दिन दोनों भाई प्रातःकाल कलकत्ते से विदा होकर चल दिये ।