पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/१८६

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लाग-डॉट ००३ एक सजन ने आकर गाँव में किसान-सभा खोली । चौधरी उसमें शरीक हुए, भगत अलग रहे । जागृति और बढ़ी, स्वराज्य की चर्चा होने लगी। चौधरी स्वराज्यवादी हो गये, भगत ने राजभक्ति का पक्ष लिया । चौधरी का घर स्वराज्यवादियों का अड्डा हो गया, भगत का घर राजभक्तों का क्लब बन गया । चौधरी जनता में स्वराज्यवाद का प्रचार करने लगे "मित्रों, स्वराज्य का अर्थ है अपना राज। अपने देश में अपना राज हो वह अच्छा है कि किसी दूसरे का राज हो वह ?" जनता ने कहा 1-अपना राज हो, वह अच्छा है। चौधरी-तो वह स्वराज्य कैसे मिलेगा ? अात्मवल से, पुरुषार्थ से, मेल से, एक दूसरे से द्वेष करना छोड़ दो। अपने झगड़े आप मिलकर निपटा लो। एक शंका-श्राप तो नित्य अदालत में खड़े रहते हैं। चौधरी-हाँ, पर आज से अदालत जाऊँ तो मुझे गऊ हत्या का पाप लगे। तुम्हें चाहिए कि तुम अपनी गाढ़ी कमाई अपने बाल-बच्चों को खिलाओ, और वचे तो परोपकार में लगायो, वकील-मुखतारों की जेब क्यों भरते हो, थानेदार को घूस क्यों देते हो, अमलों की चिरौरी क्यों करते हो ? पहले हमारे लड़के अपने धर्म की शिक्षा पाते थे; वह सदाचारी, त्यागी, पुरुपार्थी बनते थे । अब वह विदेशी मदरसों में पढ़कर चाकरी करते हैं, घूस खाते हैं, शोक करते हैं, अपने देवताओं और पितरों की निन्दा करते हैं, सिगरेट पीते हैं, बाल बनाते हैं और हाकिमों की गोदधरिया करते हैं। क्या यह हमारा कर्तव्य नहीं है कि हम अपने बालकों को धर्मानुसार शिक्षा दें ? जनता-चन्दा करके पाठशाला खोलनी चाहिए । चौधरी-हम पहले मदिरा का छूना पाप समझते थे । अब गाँव गाँव और गली गली में मदिरा की दूकानें हैं। हम अपनी गाढ़ी कमाई के करोड़ों रुपये गाजे-शराब में उड़ा देते हैं। जनता-जो दारू-माँग पिये उसे डोह लगना चाहिए! चौधरी-हमारे दादा-बाबा, छोटे-बड़े सब गाढ़ा-गजी पहनते थे। हमारी दादियाँ-नानियाँ चरखा काता करती थीं। सब धन देश में रहता था, इमारे जुलाहे भाई चैन की वशी बजाते थे। अब हम विदेश के बने हुए महीन