मानसरोवर
से मन हटेगा, तभी नशेबाजी का दमन होगा। आत्मबल के बिना स्वराज्य
कभी उपलब्ध न होगा । स्वयसेवा सब पापों का मूल है, यही तुम्हें अदालतों में
ले जाता है, यही तुम्हें विधर्मी शिक्षा का दास बनाये हुए है । इस पिशाच को
आत्मबल से मारो और तुम्हारी कामना पूरी हो जायगी। सब जानते हैं, मैं
४० साल से अफीम का सेवन करता हूँ। श्राज से मैं अफीम को गऊ का रक्त
समझता हूँ । चौधरी से मेरी तीन पीढ़ियों की अदावत है। आज से चौधरी
मेरे भाई हैं। आज से मुझे या मेरे घर के किसी प्राणी को घर के कते सूत से
बुने हुए कपड़े के सिवाय कुछ और पहनते देखो तो मुझे जो दण्ड चाहो दो।
बस मुझे यही कहना है, परमात्मा हम सबकी इच्छा पूरी करे ।
यह कहकर भगतजी घर की ओर चले कि चौधरी दौड़कर उनके गले से
लिपट गये । तीन पुश्तों की अदावत एक क्षण में शान्त हो गयी।
उस दिन से चौधरी और भगत साथ साथ स्वराज्य का उपदेश करने
लगे। उनमें गादी मित्रता हो गयी और वह निश्चय करना कठिन था कि दोनों
में जनता किसका अधिक सम्मान करती है।
प्रतिद्वन्द्विता वह चिनगारी थी जिसने दोनों पुरुषों के हृदय-दीपक को
प्रकाशित कर दिया था।
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/१८९
Jump to navigation
Jump to search
यह पृष्ठ शोधित नही है
