पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/१८८

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लाग-डॉट २०७ पहला ही अवसर था कि उन्हें सबके सामने नीचा देखना पड़ा। चिरकाल से जिस कुल मर्यादा की रक्षा करते आये थे और जिसपर अपना सर्वस्व अर्पण कर चुके थे, वह धूल में मिल गयी । यह दाहमय चिन्ता उन्हें एक क्षण के लिए चैन न लेने देती । नित्य समस्या सामने रहती कि अपना खोया हुआ सम्मान क्योंकर पाऊँ, अपने प्रतिपक्षी को क्योकर पददलित करूँ, कैसे उसका गरूर तोह अन्त में उन्होंने सिह को उसी की मॉद में ही पछाड़ने का निश्चय किया। ( ५ ) सन्ध्या का समय था । चौधरी के द्वार पर एक बड़ी सभा हो रही थी। आस-पास के गाँवों के किसान भी आ गये थे, हजारों आदमियों की भीड़ थी। चौधरी उन्हें स्वराज्य विषयक उपदेश दे रहे थे। बार-बार भारतमाता की जय-जयकार की ध्वनि उठती थी। एक ओर स्त्रियों का जमाव था। चौधरी ने अपना उपदेश समाप्त किया और अपनी जगह पर बैठे। स्वय-सेवकों ने स्वराज्य फण्ड के लिए चन्दा जमा करना शुरू कर दिया कि इतने में भगतजी न जाने किधर से लपके हुए आये और श्रोताओं के सामने खड़े होकर उच्च स्वर से बोले:- भाइयो, मुझे यहाँ देखकर अचरज मत करो, मैं स्वराज्य का विरोधी नहीं हूँ। ऐसा पतित कौन प्राणी होगा जो स्वराज्य का निन्दक हा; लेकिन इसके प्राप्त करने का वह उपाय नहीं है जो चौधरी ने बतलाया है और जिस पर तुम लोग लह, हो रहे हो। जब आपस में फूट और राड़ है तो पञ्चायती से क्या होगा ?.जब विलासिता का भूत सिर पर सवार है तो नशा कैसे छूटेगा, मदिर की दूकानों का बहिष्कार कैसे होगा ! सिगरेट, साबुन, मोजे, बनियान, अद्धी, तजेब से कैसे पिण्ड छूटेगा ? जब रोब और हुकूमत की लालसा बनी हुई है तो सरकारी मदरसे कैसे छोड़ोगे, विधर्मी शिक्षा की वेड़ी से कैसे मुक्त हो सकोगे ? स्वराज्य लेने का केवल एक ही उपाय है और वह अात्म-संयम है। यही मदीपधि तुम्हारे समस्त रोगों को समूल नष्ट करेगी। अात्मा को बलवान बनायो, इन्द्रियों को साधो, मन को वश में करो, तुममें भ्रातृभाव पैदा होगा, तभी वैमनत्य मिटेगा, तमी ईर्ष्या और द्वेष का नाश होगा, तभी भोग-विलास i ,