पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/१९

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२२ मानसरोवर

सकते हैं, पर तुम्हारा दिल नहीं टल सकता पर आज मुझे मालूम हुआ कि वह मेरा लड़कपन था । बड़ो ने सच कहा है कि स्त्री का प्रेम पानी की धार है, जिस ओर ढाल पाता है, उधर ही बह जाता है। सोना ज्यादा गर्म होकर पिघल जाता है।

कुलीना रोने लगी । क्रोध की आग पानी बनकर आँखों से निकल पड़ी। जब आवाज वश में हुई तो बोली- मैं आपके इस सन्देह को कैसे दूर करूँ।

राजा - हरदौल के खून से ।

रानी - मेरे खून से दाग न मिटेगा ?

राजा- तुम्हारे खून से और पक्का हो जायगा।

रानी- और कोई उपाय नहीं है ?

राजा -नहीं।

रानी - यह आपका अन्तिम विचार है ?

राजा -हाँ, यह मेरा अन्तिम विचार है । देखो, इस पानदान में पान का बीड़ा रखा है । तुम्हारे सतीत्व की परीक्षा यही है कि तुम हरदौल को इसे अपने हाथों खिला दो । मेरे मन का भ्रम उसी समय निकलेगा जब इस घर से हरदौल की लाश निकलेगी।

रानी ने घृणा की दृष्टि से पान के बीड़े को देखा और वह उलटे पैर लौट आयी।

रानी सोचने लगी - क्या हरदौल के प्राण लूँ ? निदोष सच्चरित्र वीर हरदौल की जान से अपने सतीत्व की परीक्षा दूँ ? उस हरदौल के खून से अपना हाथ काला करूँ जो मुझे बहन समझता है ! यह पाप किसके सिर पड़ेगा ? क्या एक निदोष का खून रग न लायेगा ? आह ! अभागी कुलीना! तुझे आज अपने सतीत्व की परीक्षा देने की आवश्यकता पड़ी है, और वह ऐसी कठिन ? नहीं यह पाप मुझसे न होगा । यदि राजा मुझे कुलटा समझते हैं, तो समझे, उन्हें मुझपर सन्देह है, तो हो । मुझसे यह पाप न होगा | राजा को ऐसा सन्देह क्यों हुआ क्या केवल थालों के बदल जाने से ? नहीं , अवश्य कोई और बात है। आज हरदौल उन्हें जंगल में मिल गया था। राजा ने उसकी कमर