पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/१९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अमावास्या की रात्रि २१६ रुपये मनुष्य की जान से प्यारे हैं। वे आपके समक्ष । मुझे गिरिजा की एक चितवन इन रुपयों से कई गुनी प्यारी है। वैद्यजी ने लजामय सहानुभूति से देवदत्त की ओर देखा और केवल इतना -मुझे अत्यन्त शोक है, मैं सदैव के लिए तुम्हारा अपराधी हूँ। किन्तु तुमने मुझे शिक्षा दे दी । ईश्वर ने चाहा तो अब ऐसी मूल कदापि न होगी। मुझे शोक है । सचमुच है। ये बातें वैद्यजी के अन्तःकरण से निकली थीं। कहा- r