पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/२०४

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पछतावा २२६ काग़ज़ों के अनुवाद में लग जाते हैं। एक अँगरेजी का पूर्ण पण्डित सहज ही में मिल रहा है । सो भी अधिक तनख्वाह नहीं देनी पड़ेगी। इसे रख लेना ही उचित है । लेकिन पण्डितजी की बात का उत्तर देना आवश्यक था, अतः कहा-महाशय, सत्यवादी मनुष्य को कितना ही कम वेतन दिया जाये, वह सत्य को न छोड़ेगा और न अधिक वेतन पाने से वेईमान सच्चा बन सकता है। सच्चाई का रुपये से कुछ सम्बन्ध नहीं। मैंने ईमानदार कुली देखे हैं और बेईमान बड़े बड़े धनान्य पुरुष । परन्तु अच्छा, आप एक सज्जन पुरुष हैं । आप मेरे यहाँ प्रसन्नतापूर्वक रहिए। मैं आपको एक इलाके का अधिकारी बना दूंगा और आपका काम देखकर तरक्की भी कर दूंगा । दुर्गानाथजी ने २०) मासिक पर रहना स्वीकार कर लिया । यहाँ से कोई ढाई मील पर कई गाँवों का एक इलाका चॉदपार के नाम से विख्यात था। पण्डितजी इसी इलाके के कारिन्दे नियत हुए । (२) पण्डित दुर्गानाथ ने चौदपार के इलाके में पहुँचकर अपने निवासस्थान को देखा तो उन्होंने कुँवर साहव के कथन को बिलकुल सत्य पाया । यथार्थ में रियासत की नौकरी सुख सम्पत्ति का घर है। रहने के लिए सुन्दर बँगला है, जिसमें बहुमूल्य बिछौना बिछा हुआ था, सैकड़ों बीघे की सीर, कई नोकर- चाकर, कितने हो चपरासी, सवारी के लिए एक सुन्दर टौंगन, सुख ठाट-बाट के सारे सामान उपस्थित । किन्तु इस प्रकार की सजावट और विलास की सामग्री देसकर उन्हें उतनी प्रसन्नता न हुई। क्योंकि इसी सजे हुए बँगले के चारों श्रोर किसानों के झोपड़े थे। फूस के घरों में मिट्टी के बर्तनों के सिवा और सामान ही क्या था! वहाँ के लोगों में वह बँगला कोट के नाम से विख्यात था । लहके उसे भय की दृष्टि से देखते । उसके चबूतरे पर पैर रखने का उन्हें साहस न पढ़ता । इस दीनता के बीच में इतना बड़ा ऐश्वर्ययुक्त दृश्य उनके लिए अत्यन्त हृदयविदारक था। किसानों को यह दशा थी कि सामने आते हुए थर-पर काँपते थे । चारासी लोग उनसे ऐसा बर्ताव करते थे कि पशुओं के साथ भी वैसा नहीं होता। पहले ही दिन कई सी किसानों ने परिहतजी को अनेक प्रकार के पदार्थ