पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/२०७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२३२ मानसरोवर हमी को डॉटते हैं। कुँवर साहब ने कहा-तुम्हारी इज्जत भी क्या उतरी है, अब उतरेगी। दोनों लड़के सरोष बोले-सरकार अपना रुपया लेंगे कि किसी की इज्जत लेंगे? 5 कुँवर साहब (ऐंठकर )-रुपया पीछे लेंगे, पहले देखेंगे कि तुम्हारी इज्जत कितनी है! ८ चाँदपार के किसान अपने गाँव पर पहुंचकर परिहत दुर्गानाथ से अपनी रामकहानी कह ही रहे थे कि कुँवर साहब का दूत पहुँचा और खबर दी कि सरकार ने आपको अभी-अभी बुलाया है । दुर्गानाथ ने असामियों को परितोष दिया और आप घोड़े पर सवार होकर दरबार में हाजिर हुए। कुँवर साहब की ऑखें लाल थीं। मुख की प्राकृति भयकर हो रही थी। कई मुख्तार और चपरासी बैठे हुए श्राग पर तेल डाल रहे थे। पण्डितजी को देखते ही कुँवर साहब बोले-चाँदपारवालों की हरकत आपने देखी ? पण्डितजी ने नम्र भाव से कहा-जी हाँ, सुनकर बहुत शोक हुा । ये तो ऐसे सरकश न थे। कुँवर साहब-यह सब आप ही के आगमन का फल है। आप अमी स्कूल के लड़के हैं। आप क्या जाने कि ससार में कैसे रहना होता है । यदि आपका बर्ताव असामियों के साथ ऐसा ही रहा तो फिर मैं जमींदारी कर चुका । यह सब अापकी करनी है। मैंने इसी दरवाज़े पर असामियों को बाँध-बॉधकर उलटे लटका दिया है और किसी ने चूँ तक न की। श्राज उनका यह साहस कि मेरे ही आदमी पर हाथ चलायें। दुर्गानाथ ( कुछ दबते हुए)-महाशय, इसमें मेरा क्या अपराध ! मैंने तो जब से सुना है तभी से स्वय सोच में पड़ा हूँ । कुँवर साहब-आपका अपराध नहीं तो किसका है ? श्राप ही ने तो इनको सिर चढ़ाया । वेगार वद कर दी, आप ही उनके साथ भाईचारे का बर्ताव करते है, उनके साथ हंसी-मजाक करते हैं। ये छोटे श्रादमी इस पर्ताव की कदर <