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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/२०६

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पछतावा २३१ साहब ने चाँदपारवालों को बुलाया और कहा-हमारा नाज और रुपया वेवाक कर दो। यह चैत का महीना है । जब तक कढ़ाई न की जाय, तुम लोग डकार नहीं लेते। इस तरह काम नहीं चलेगा । वृढे मलूका ने कहा- सरकार, भला असामी कभी अपने मालिक से वेबाक हो सकता है । कुछ अभी ले लिया जाय, कुछ फिर दे देंगे | हमारी गर्दन तो सरकार की मुट्टी में है। कुँवर साहब-याज कौड़ी-कौड़ी चुकाकर यहाँ से उठने पाओगे। तुम लोग हमेशा इसी तरह हीला हवाला किया करते हो। मलूका ( विनय के साथ )-हमारा पेट है, सरकार की रोटियों हैं, हमको और क्या चाहिए ? जो कु; उपज है वह सब सरकार ही की है। कुँवर साहब से मलूका की यह वाचालता सही न गयी। उन्हें इस पर क्रोध आ गया ; राजा-रईस ठहरे। उन्होंने बहुत कुछ खरी-खोटी सुनाई और कहा--कोई है ? ज़रा इस बुड्ढे का कान तो गरम करो, यह बहुत बढ़ बढ़कर बातें करता है । उन्होने तो कदाचित् धमकाने की इच्छा से कहा, किन्तु चपरासी कादिर खाँ ने लपककर बूढे की गर्दन पकड़ी और ऐसा धका दिया कि वेचारा ज़मीन पर जा गिरा। मलूका के दो जवान बेटे वहाँ चुपचाप खड़े थे। बाप की ऐसी दशा देखकर उनका रक्त गर्म हो उठा। वे दोनों झपटे और कादिर खों पर टूट पड़े । धमाधम शब्द सुनाई पढ़ने लगा। खाँ साहब का पानी उतर गया, साफ़ा अलग जा गिरा। अचकन के टुकड़े-टुकड़े हो गये। किन्तु जवान चलती रही। मलका ने देखा, वात विगढ़ गयी । वह उठा और कादिर खाँ को छुड़ाकर अपने ल्हकों को गालियाँ देने लगा। जब लड़कों ने उसी को डॉटा तब दौड़- कर कुँवर साहब के चरणों पर गिर पड़ा। पर वात यथार्थ में विगढ़ गयी थी। मूढ़े के इस विनीत भाव का कुछ प्रभाव न हुा । कुँवर साहब की आँखों से मानो आग के अँगारे निकल रहे थे। वे बोले-वेईमान, ऑसों के सामने से दूर हो जा । नहीं तो तेरा खून पी जाऊँगा । बूढ़े के शरीर में रक्त तो अब वैसा न रहा था, किन्तु कुछ गर्मी अवश्य थी। समझता था कि ये कुछ न्याय करेंगे, परन्तु यह फटकार तुनकर बोला- सरकार, बुढ़ापे में आपके दरवाजे पर पानी उतर गया और तिस पर सरकार