सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/२३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२५४ मानसरोवर कर लो और इसी वक्त इसका सिर उदा दो। इसे मालूम हो जाय कि बाद- शाहों से वेअदबी करने का क्या नतीजा होता है। कोतवाल को सहसा 'जेनरल' पर हाथ बढ़ाने की हिम्मत न पड़ी। रोशनुद्दौला ने उससे इशारे से कहा-खड़े सोचते क्या हो, पकड़ लो, नहीं तो तुम भी इसी आग में जल जानोगे। तब कोतवाल ने आगे बढ़कर बख्तावरसिंह को गिरफ्तार कर लिया। एक क्षण में उनकी मुश्क कस दी गयीं । लोग उन्हें चारों ओर से घेरकर कत्ल करने ले चले। बादशाह ने मुसाहबों से कहा-मैं भी वहीं चलता हूँ। जरा देलूँगा कि नमकहरामों की लाश क्योंकर तड़पती है। कितनी घोर पशुता थी ! यही प्राणी जरा देर पहले बादशाह का विश्वास- पात्र था ! एकाएक बादशाह ने कहा-पहले इस नमकहराम की खिलअत उतार लो । मैं नहीं चाहता कि मेरी खिलअत की बेइज्जती हो । किसकी मजाल थी, जो जग भी जबान हिला सके। सिपाहियों ने राजा साहब के वस्त्र उतारने शुरू किये । दुर्भाग्यवश उनके जेब से एक पिस्तौल निकल आई। उसकी दोनों नालियों भरी हुई थीं। पिस्तौल देखते ही बादशाह की आँखों से चिनगारियों निकलने लगीं। बोले -कसम है हजरत इमामहुसैन की, अब इसकी जाँबख्शी नहीं करूँगा । मेरे साथ भरी हुई पिस्तौल की क्या जरूरत ! जरूर इसकी नीयत में फितूर था । अब मैं इसे कुत्तों से नुचवाऊँगा। (मुसाहबों की तरफ देखकर ) देखी तुम लोगों ने इसकी नीयत ! मैं अपनी आस्तीन में साँप पाले हुए था । आप लोगों के खयाल में इसके पास भरी हुई पिस्तौल का निकलना क्या माने रखता है ? अंग्रेज़ों को केवल राजा साहब को नीचा दिखाना मजूर था। वे उन्हें अपना मित्र बनाकर जितना काम निकाल सकते थे उतना उनके मारे जाने से नहीं। इसी से एक अंग्रेज-मुसाहब ने कहा-मुझे तो इसमें कोई गैरमुनासिब बात नहीं -मालूम होती । जेनरल आपका वाडीगार्ड ( रक्षक ) है । उसे हमेशा हथियार-बद