पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/२४९

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२७२ मानसरोवर में विषम वेदना होती रही--तो उसने विवश होकर फिर सन्मार्ग का आश्रय लिया । पर डडों से पेट चाहे भर गया हो, वह उत्कंठा शात न हुई । वह किसी ऐसी जगह जाना चाहता था, जहाँ खूब शिकार मिले , खरगोश, हिरन, मेड़ों के बच्चे मैदानों में विचर रहे हों और उनका कोई मालिक न हो, जहाँ किसी प्रतिद्वन्द्वी की गंध तक न हो, आराम करने को सघन वृक्षों को छाया हो, पीने को नदी का पवित्र जल | वहाँ मनमाना शिकार करूँ, खाऊँ और मीठी नींद सोऊँ। वहाँ चारों ओर मेरी धाक बैठ जाय, सब पर ऐसा रोब छा जाय कि मुझी को अपना राजा समझने लगें और धीरे-धीरे मेरा ऐसा सिक्का बैठ जाय कि किसी द्वेपी को वहाँ पैर रखने का साहस ही न हो। संयोगवश एक दिन वह इन्ही कल्पनाओं के सुख स्वप्न देखता हुआ सिर मुकाये सड़क छोड़कर गलियों से चला जा रहा था कि सहसा एक सजन से उसकी मुठभेड़ हो गयी। टामी ने चाहा कि बचकर निकल जाऊँ, पर वह दुष्ट इतना शातिप्रिय न था । उसने तुरन्त झपटकर टामी का टेटुआ पकड़ लिया । टामी ने बहुत अनुनय-विनय की , गिड़गिड़ाकर कहा-ईश्वर के लिए मुझे यहाँ से चले जाने दो, फ़सम ले लो, जो इधर पैर रखू । मेरी शामत आयी थी कि तुम्हारे अधिकार क्षेत्र में चला आया। पर उस मदान्ध और निर्दय प्राणी ने जरा भी रिआयत न की । अन्त में हारकर टामी ने गर्दभ स्वर में फरियाद करनी शुरू की । यह कोलाहल सुनकर मोहल्ले के दो चार नेता लोग एकत्र हो गये , पर उन्होंने भी दीन पर दया करने के बदले उलटे उसी पर दन्त प्रहार करना शुरू किया । इस अन्यायपूर्ण व्यवहार ने टामी का दिल तोड़ दिया। वह जान छोड़कर भागा। उन अत्याचारी पशुओं ने बहुत दूर तक उसका पीछा किया, यहाँ तक कि मार्ग में एक नदी पड़ गयी और टामी उसमें कूदकर अपनी जान बचायी। कहते हैं, एक दिन सबके दिन फिरते हैं । टामी के दिन भी नदी मे कूदते ही फिर गये । कूदा या जान बचाने के लिए, हाथ लग गये मोती । तैरता हुआ उस पार पहुँचा, वहाँ उसकी चिर-सचित अभिलाषाएँ मूतिमती हो रही थीं। ( २ ) यह एक विस्तृत मैदान था। जहाँ तक निगाह जाती थी, हरियाली की ।