३२
मानसरोवर
( ३ )
दो साल हो गये हैं। लाला गोपीनाय ने एक कन्या-पाठशाला खोली है
और उसके प्रबन्धक हैं। शिक्षा की विभिन्न पद्धतियों का उन्होंने खूब अध्ययन
किया है और इस पाठशाला में वह उनका व्यवहार कर रहे हैं। शहर में यह
पाठशाला बहुत ही सर्वप्रिय है। इसने बहुत अशों में उस उदासीनता का
परिशोध कर दिया है, जो माता-पिता को पुत्रियों की शिक्षा की ओर होती है।
शहर के गण्य-मान्य पुरुष अपनी लड़कियों को सहर्प पढ़ने भेजते हैं। वहाँ
शिक्षाशैली कुछ ऐसी मनोरंजक है कि बालिकाएँ एक बार जाकर मानों
मंत्रमुग्ध हो जाती हैं । फिर उन्हें घर पर चैन नहीं मिलता। ऐसी व्यवस्था की
गयी है कि तीन चार वर्षों में ही कन्याओं को गृहस्थी के मुख्य कामों से
परिचय हो जाय । सबसे बड़ी बात यह है कि यहाँ धर्मशिक्षा का भी समुचित
प्रबन्ध किया गया है। अबकी साल से प्रबन्धक महोदय अंगरेजी की
कक्षायें भी खोल दी हैं। एक सुशिक्षित गुजराती महिला को वम्बई से
बुलाकर पाठशाला उनके हाथ में दे दी है । इन महिला का नाम है आनन्दी
बाई । विधवा हैं । हिन्दी भाषा से भली-भाँति परिचित नहीं हैं, किन्तु गुजराती
में कई पुस्तकें लिख चुकी हैं। कई कन्या पाठशालाओं में काम कर चुकी हैं ।
शिक्षा सम्बन्धी विषयों में अच्छी गति है। उनके आने से मदरसे और भी
रौनक आ गयी है । कई प्रतिष्ठित सज्जनों ने जो अपनी बालिकाओं को मसूरी
और नैनीताल मेजना चाहते थे, अब उन्हें वहीं भरती करा दिया है । अानन्दी
रईसों के घरों में जाती है और स्त्रियों में शिक्षा का प्रचार करती है। उनके वस्त्रा-
भूषणों से सुरुचि का बोध होता है । हैं भी उच्चकुल की, इसलिये शहर में उनका
बड़ा सम्मान होता है | लड़कियों उन पर जान देती हैं, उन्हें माँ कहकर पुकारती
हैं । गोपीनाथ पाठशाला की उन्नति देख-देखकर फूले नहीं समाते। जिससे
मिलते हैं, आनन्दी वाई का ही गुणगान करते हैं । बाहर से कोई सुविख्यात
पुरुष आता है, तो उससे पाठशाला का निरीक्षण अवश्य कराते है । आनन्दी
की प्रशसा से उन्हें वही आनन्द प्राप्त होता है, जो स्वय अपनी प्रशसा से होता ।
चाईजी को भी दर्शन से प्रेम है, और सबसे बड़ी बात यह है कि उन्हें गोपीनाथ
पर असीम श्रद्धा है । वह हृदय से उनका सम्मान करती हैं। उनके त्याग और
1
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/२७
Jump to navigation
Jump to search
यह पृष्ठ शोधित नही है
