पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/२६

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त्यागी का प्रेम अपने लिए पान का एक वीड़ा भी भिक्षा है । स्वभाव में एक प्रकार की स्वच्छन्दता अा गयी थी। इन त्रुटियों पर परदा डालने के लिये जातिसेवा का बहाना बहुत अच्छा था! एक दिन वह सैर करने जा रहे थे कि रास्ते में अध्यापक अमरनाथ से मुलाकात हो गई। यह महाशय अब म्युनिसिपलबोर्ड के मंत्री हो गए थे और आज-कल इस दुविधा में पड़े हुये थे कि शहर में मादक वस्तुओं के वेचने का ठीका लूं या न लूँ । लाभ बहुत था, पर वदनामी भी कम न थी। अभी तक कुछ निश्चय न कर चुके थे। इन्हें देखकर बोले-कहिए लालाजी, मिजाज अच्छा है न! आपके विवाह के विषय में क्या हुआ ? गोपीनाथ ने दृढ़ता से कहा-मेरा इरादा विवाह करने का नहीं है। अमरनाथ-ऐसी भूल न करना । तुम अभी नवयुवक हो, तुम्हें संसार का कुछ अनुभव नहीं है। मैंने ऐसी कितनी मिसालें देखी हैं, जहाँ अविवाहित रहने से लाभ के बदले हानि ही हुई है । विवाह मनुष्य को तुमार्ग पर रखने का सबसे उत्तम साधन है, जिसे अब तक मनुष्य ने आविष्कृत किया है। उस व्रत से क्या फायदा जिसका परिणाम छिछोरापन हो । गोपीनाथ ने प्रत्युत्तर दिया-'आपने मादक वस्तुयों के ठीके के विषय में क्या निश्चय किया अमर-अभी तो कुछ नहीं। जी हिचकता है। कुछ-न-कुछ बदनामी तो होगी ही। गोपी -एक अध्यापक के लिये मैं इस पेशे को अपमान समझता हूँ। अमर--कोई पेशा खराब नहीं है, अगर ईमानदारी से किया जाय । गोरी--यहाँ मेग श्राप से मतभेद है । कितने ऐसे व्यवसाय हैं जिन्हें एक सुशिक्षित व्यक्ति कभी स्वीकार नहीं कर सकता। मादक वस्तुओं का ठीका उनमें एक है। गोपीनाथ ने आकर अपने पिता से कहा-मैं कदापि विवाह न करूँगा। आप लोग मुझे विवश न करें, वरना पछताइयेगा। अमरनाथ ने उसी दिन ठीके के लिये प्रार्थनापन भेज दिया और वह स्वीकृत भी हो गया।