४२ मानसरोवर पर किसी लेकिन पंडित अमरनाथ और उनकी गोष्ठी के लोग गोपीनाथ को इतने सस्ते न छोड़ना चाहते थे। उन्हें गोपीनाथ से पुराना द्वेष था। यह कल का लौंडा, दर्शन की दो चार पुस्तके उलट-पुलटकर, राजनीति में कुछ शुदबुद करके लीडर बना हुआ बिचरे, सुनहरी ऐनक लगाये, रेशमी चादर गले में डाले, यो गर्व से ताके, मानों सत्य और प्रेम का पुतला है। ऐसे रँगे सियारों की जितनी कलई खोली जाय, उतना ही अच्छा । जाति को ऐसे दगावाज, चरित्रहीन, दुर्बलात्मा सेवकों से सचेत कर देना चाहिए । पण्डित अमरनाथ पाठशाला की अध्यापिकाओं और नौकरों से तहकीकात करते थे । लालाजी कब आते थे, कब जाते थे, कितनी देर रहते थे, यहाँ क्या किया करते थे, तुम रोग उनकी उपस्थिति में वहाँ जाने पाते थे या रोक थी। लेकिन यह छोटे छोटे आदमी जिन्हें गोपीनाथ से सन्तुष्ट रहने का कोई कारण न या (उनकी सख्ती की नौकर लोग बहुत शिकायत किया करते थे) इस दुरवस्था में उनके ऐबों पर परदा डालने लगे । अमरनाथ ने बहुत प्रलोभन दिया, डराया, धमकाया ने गोपीनाथ के विरुद्ध साक्षी न दी। उधर लाला गोपीनाथ ने उसी दिन से श्रानन्दी के घर आना-जाना छोड़ दिया । दो हफ्ते तक तो वह अभागिनी किसी तरह कन्या पाठशाला में रही। पन्द्रह दिन प्रबन्धक समिति ने उसे मकान खाली कर देने की नोटिस दे दिया। महीने भर की मोहलत देना मी उचित न समझा। अब वह दुखिया एक तग मकान में रहती थी, कोई पूछनेवाला न या। बच्चा कमजोर, खुद बीमार, कोई आगे, न पीछे, न कोई दुःख का संगी, न साथी । शिशु को गोद में लिए दिन के-दिन बेदाना-पानी पड़ी रहती थी। एक बुढ़िया महरी मिल गयी थी, जो वर्तन धोकर चली जाती थी। कभी-कभी शिशु को छाती से लगाये रात की रात रह जाती पर धन्य है उसके धैर्य और सन्तोष को! लाला गोपीनाथ से मुँह में शिकायत थी न दिल में । सोचती, इन परिस्थितियों में उन्हें मुझसे पराङ्मुख ही रहना चाहिए। इसके अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं है। उनके बदनाम होने से नगर की कितनी बड़ी हानि होती। सभी उन पर सन्देह करते हैं ; पर किसी को यह साहस तो नहीं हो सकता कि उनके विपक्ष में कोई प्रमाण दे सके! 4
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/३७
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